विलेज पोर्न स्टोरी में पढ़ें कि एक तरफ मास्टर अपनी स्टूडेंट की कुंवारी बुर की चुदाई के लिए बेताब था। दूसरी तरफ लकी का बाप खेतों में मजदूर औरत को चोद रहा था.
मैं झांटू प्रसाद कहानी का तीसरा भाग आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूं।
कहानी के दूसरे भाग
हरामी मास्टर की वासना भरी कुदृष्टि
में अभी तक आप जान चुके हैं कि मास्टर ज्ञानचंद गांव के रसूखदार आदमी रामेश्वर की इकलौती नवयौवना बेटी ज्योति को गणित पढ़ाने उनकी हवेली पहुंच गया था। ज्योति ज्ञानचंद को हवेली दिखाते हुए तीसरी मंजिल पर ले गई जहां पर ज्ञानचंद के ठहरने की व्यवस्था की गई थी।
अब आगे विलेज पोर्न स्टोरी:
ज्ञानचंद को जिस कमरे में ठहराने की व्यवस्था की गई थी वह काफी बड़ा था।
उसके कमरे में भी पुरानी पेंटिंग और सजावट की चीजें वैसे ही सजाई गई थीं जैसा कि हवेली के बाकी कमरों की साज-सज्जा थी।
ज्योति उसको कमरा दिखाने लगी।
ज्ञानचंद का लंड ज्योति की अनछुई जवानी का भोग लगाने के बारे में सोच सोचकर बार बार खड़ा हो रहा था.
पर वह किसी तरह उसको शांत रखने की कोशिश कर रहा था यह सोचकर कि वो ज्योति के साथ रात को उसके कमरे में घंटों बैठकर उसको पढ़ाया करेगा और उसके कली जैसे बदन को नहारा करेगा.
उसके लिंगमुंड से प्रीकम छूटने लगा था।
इससे पहले कि लिंगमुंड उसकी पैंट पर गीलेपन को बाहर ले आता, उसने ज्योति से कहा कि वो एक बार बाथरूम जाना चाहता है।
ज्योति वहीं बेड पर बैठ गई और ज्ञानचंद अंदर मूत्र विसर्जन करने चला गया।
कमोड के पास खड़ा होकर जब उसने लंड को बाहर निकाला तो उसका मूसल लंड उसके अंडरवियर के अग्रभाग को कामरस से भिगो चुका था।
लिंगमुंड पूरा का पूरा कामरस में लिपट गया था और टोपे में गजब की सरसरी मच रही थी।
ज्ञानचंद का मन हुआ कि एक बार मुठिया दे इस मूसल को ताकि ये ज्योति के सामने लज्जा का कारण न बने।
ज्ञानचंद खुद हैरान था कि जिंदगीभर इतनी चूतें चोदने के बाद आज उसको ज्योति के यौवन ने मुठ मारने पर मजबूर कर दिया था।
लेकिन किसी तरह ज्ञानचंद ने खुद को शांत किया।
वो मुठ मारकर ज्याति की कुंवारी चूत की चुदाई करने की बेचैनी को कम नहीं करना चाहता था। वो चाह रहा था कि उसके लंड की ये गर्मी ज्योति की अक्षता योनि में ही निकले।
मूतने के बाद उसका कामवेग थोड़ा शांत हुआ।
वो बाहर आया तो ज्योति मुस्करा रही थी।
दोनों बेड पर बैठकर बातें करने लगे।
ज्योति बार बार मास्टरजी का हाथ पकड़ कर हंस रही थी। ज्योति को पता नहीं था कि वो आग में घी डालने का काम कर रही है।
जिस मास्टर से पढ़कर वो पास होने के लिए उत्साहित है, वही मास्टर उसको कामशिक्षा की दीक्षा भी देगा।
इस तरह हंसते खिलखिलाते ज्योति मास्टरजी को उनका कमरा दिखाकर सबसे नीचे वाले तल पर ले आई।
नीचे आने के बाद नौकरानी उनको रामेश्वर के कमरे में ले गई।
ज्ञानंचद वहां आराम करने लगा और नौकर उनके सामान को ऊपर वाले कमरे में रखने लगे।
अब ज्ञानंचद से ज्योति की पढ़ाई शुरू करने के लिए इंतजार नहीं हो रहा था।
ज्योति की चुदाई के विचारों में लेटे हुए ज्ञानचंद को सफर की थकान ने नींद की गोद में सुला दिया।
आंख खुली तो सायं के 6 बज गए थे।
रामेश्वर मंडी से लौटकर खेत में काम कर रहे मजदूरों को संभालने के लिए निकल गए थे।
ज्ञानचंद बाहर आया तो नौकरानी ने उनसे चाय के लिए पूछा।
हाथ-मुंह धोकर वह चाय पीन के लिए बैठ गया।
अनायास ही ज्ञानचंद का ध्यान नौकरानी की ओर चला गया।
अब से पहले उसने उसे ध्यान से नहीं देखा।
उसकी चाल में एक शालीनता थी जैसे कि वो इस हवेली की नौकरानी नहीं, बल्कि मालकिन हो।
उसके अंदाज में निडरता और सहजता का ऐसा संगम था जैसे इस हवेली को वो ही संभालती हो और सब लोग उसी का कहा मानते हों।
उसके कपड़े साधारण थे लेकिन शरीर की बनावट किसी रानी से कम न थी।
भरे पूरे बदन की मालकिन वो नौकरानी जैसे काम की भी देवी हो।
भरे हुए कंधे, कसी हुई चोली, भारी भरकम नितंब और उस पर बलखाती चाल का राजसी अंदाज।
ज्ञानचंद सोच रहा था कि रामेश्वर ने नौकरानी भी बिल्कुल छांटकर रखी है।
चाय पीते हुए ज्ञानचंद रामेश्वर के खेत से लौटने का इंतजार करने लगा।
उधर खेत में रामेश्वर मजदूरों की निगरानी कर रहा था।
गर्मियों के दिन थे और सायं के 7 बजे सूर्य देव ने प्रकाश को समेटना शुरू कर दिया था।
रामेश्वर ने मजदूरों से काम बंद करने के लिए कहा और कल सुबह समय से आने के लिए बोल दिया।
सभी मजदूर औजार एक जगह रखते हुए एक एक करके खेत से निकलने लगे।
मजदूरों में कुछ महिलाएं भी थीं।
कुछ अपने मर्दों के साथ आती थीं और एक दो अकेले भी आती थी।
लगभग सब मजदूर खेत छोड़कर जा चुके थे।
पीछे चल रही दो महिलाओं में से एक खेत से बाहर न जाकर खेत के दूसरे कोने में चल रहे ट्यूबवेल की ओर चल पड़ी।
रामेश्वर की नजर भी उसे देख रही थी।
वो एक बार रामेश्वर को पलभर देखती और फिर आगे चलने लगती। ट्यूबवेल के पास जाकर वह ठंडे पानी से गले की प्यास बुझाने लगी।
ट्यूबवेल का पाइप एक कोठड़ी में से बाहर निकलता था।
कोठड़ी के अंदर एक तख्त के अलावा छत का पंखा भी था।
कभी कभी रामेश्वर दिन के समय में मजदूरों व खेत की निगरानी के लिए यहां लेट लिया करता था इसलिए तख्त पर बिछावन और तकिया भी रहता था।
साथ में हुक्का, चिलम और पानी का मटका भी रखा रहता था।
मजदूरों के जाने के बाद रामेश्वर अक्सर ट्यूबवेल के ठंडे पानी में नहाने के बाद ही घर जाता था।
पानी पीने के बाद महिला ने मुड़कर देखा तो उसे रामेश्वर दिखाई नहीं दिया।
उसने यहां वहां देखा और साड़ी का पल्लू उतार दिया।
संध्या हो चुकी थी और दूर से देखने पर दो एकड़ दूर खड़ा इन्सान नजर नहीं आ सकता था।
महिला ने साड़ी खोली और उतार कर एक तरफ रख दी।
वो ब्लाउज और पेटीकोट में पानी की हौद के अंदर उतर गई और बैठकर नहाने लगी।
दो चार गोते लगाने के बाद वो हौद से बाहर निकल आई।
बाहर आकर वो बदन के पानी के निचुड़ जाने का इंतजार करती हुई हौद के बाहर खड़ी रही।
इतने में ही दो मजबूत हाथों ने उसको पीछे से अपने आगोश में समा लिया।
ये हाथ रामेश्वर के थे।
महिला को अपनी नितंबों में कुछ कठोर सा लगता हुआ महसूस हो रहा था।
उसने एकदम से कहा- अभी जाने दीजिए मालिक, कोई देख लेगा।
तो रामेश्वर ने कहा- तू किसी की चिंता मत कर रानी, बस मैं जो कर रहा हूं, वो करने दे।
रामेश्वर केवल कच्छे में था और उसने अपना लंड महिला के गीले पेटीकोट के ऊपर से उसके चूतड़ों पर सटा दिया था।
उसके हाथ महिला के ब्लाउज में कैद मोटे चूचों पर आकर सहलाने लगे थे।
औरत के लहजे से लग रहा था कि वो इससे पहले भी रामेश्वर के लंड की सेवा कर चुकी है।
विलेज पोर्न ज्यादातर खेतों में ही होता है.
रामेश्वर उसकी चूचियों को दबाते हुए उसकी गर्दन पर चूमने लगा, अपने लंड को उसके गीले चूतड़ों पर रगड़ने लगा।
कभी वो चूचियों को जोर जोर से भींचने लगता तो कभी पेटीकोट के आगे की तरफ उसकी चूत को सहलाने लगता।
फिर उसने पेटीकोट को उठाना शुरू कर दिया।
पीछे से उसने महिला के चूतड़ों तक पेटीकोट को उठा दिया और उसकी गांड के नीचे हाथ देकर उसकी चूत को रगड़ने लगा।
महिला सिसकार उठी- आह्ह मालिक! मत करिए ना … कोई देख लेगा।
रामेश्वर का बदन महिला के गीले बदन से लगकर आधा गीला हो गया था।
उसने पेटीकोट को छोड़ा और हाथ से खींचते हुए महिला को कोठड़ी के अंदर ले गया।
अंदर जाते ही उसने उसके ब्लाउज को उतार दिया और दीवार के साथ लगाकर उसकी चूचियों में मुंह देकर पीने लगा।
महिला के बूब्स काफी बड़े थे और रामेश्वर जैसे किसी नवजात की तरह उसके बड़े बड़े बूब्स में मुंह लगाकर दूध को पीने लगा।
चूचियों को चूसने और दबाने के बाद उसने महिला का पेटीकोट उठाया और उसके पेट तक चढ़ाकर उसकी चूत पर हाथ पर हाथ फेरने लगा।
रामेश्वर मजबूत कद काठी का व्यक्ति था और उसके मर्दन के आगे महिला को पिघलते देर न लगी।
वो भी रामेश्वर से लिपटने लगी और एक टांग रामेश्वर के कूल्हों पर चढ़ा दी।
रामेश्वर ने कच्छा नीचे खींचा और महिला की चूत को टटोलते हुए लंड उसकी चूत में चढ़ा दिया।
दीवार के सहारे लगाए हुए वो उस मजदूर औरत की भीगी लेकिन गर्म चूत को चोदने लगा।
महिला सिसकारी- आह्ह मालिक! आराम से … आईई … आह्ह … आराम से करिए … ओह्ह।
रामेश्वर- करने दे मेरी रानी, तेरी भीगी चूचियों को देखकर मुझसे आज रुका नहीं गया।
कहकर रामेश्वर फिर से उसकी चूचियों में मुंह देकर चूसने काटने लगा।
नीचे से वो झटके दे देकर महिला की चूत को ठोक रहा था।
फिर उसने चूत से लंड निकाला और महिला का मुंह दीवार की तरफ करवा दिया।
उसने महिला को दीवार पर हाथ टिकाकर पीछे से गांड उठाने के लिए कहा।
महिला दीवार के सहारे झुक गई और रामेश्वर ने पीछे से उसकी चूत में लंड को धकेल दिया।
एक बार फिर उस मजदूर महिला की चूत पेलम पेल शुरू हो गई।
अब उसको हल्का दर्द भी हो रहा था क्योंकि रामेश्वर मोटे लंड का मालिक था।
वो दर्द और आनंद में सिसकारने लगी- आह्ह … आईई … उईईई … ईईई … उफ्फ … मालिक … आह्ह।
अब रामेश्वर के मुंह से भी जोश भरी सिसकारियां निकल रही थीं- आह्ह … हाह्हह … इस्सस … आह्हह … मेरी रानी … तुझे चोदने का मजा ही अलग है। तेरी चूत इतनी रसीली है कि लंड इसका रस पीते-पीते संतुष्ट होता ही नहीं है।
रामेश्वर और महिला दोनों की सिसकारियों से कोठड़ी गूंज रही थी।
महिला दोनों हाथ दीवार से लगाए हुए थी लेकिन रामेश्वर के मूसल लंड के धक्के इतने तेज थे कि महिला का मुंह दीवार से टकरा जाता था।
कई मिनट तक उसकी चूत की बखिया उधड़ने के बाद उसने महिला को घुटनों में बिठा लिया और खड़ा होकर उसको लंड चुसवाने लगा।
वो महिला पूरे जोश में अपने मालिक के लंड को चूसने लगी।
दो मिनट की चुसाई के बाद रामेश्वर ने उस महिला को तख्त पर लिटा लिया और खुद भी तख्त पर चढ़ गया।
उसने महिला की चूत पर लंड का टोपा रगड़ना शुरू किया और काफी देर तक रगड़ता रहा।
महिला लंड लेने के लिए बेताब हो उठी।
फिर उसने उसको तख्त पर घोड़ी बना लिया और पीछे से उसकी चूत को ठोकने लगा।
अबकी बार के धक्के और भी ज्यादा ताकतवर थे।
मजदूर महिला की चूत अब चरमराने लगी थी।
उसकी चूत के होंठ रामेश्वर के लंड की रगड़ से छिलने लगे थे।
लेकिन स्खलन से पहले रामेश्वर रुकने वाला नहीं था, महिला ये अच्छे तरीके से जानती थी।
किसी तरह वो उसके लंड के धक्कों को बर्दाश्त करती रही।
अब धीरे-धीरे रामेश्वर के लंड की अकड़न बढ़ने लगी थी; उसके लिंग की रक्तवाहनियां फूलकर अलग से दिखने लगी थीं।
उसने महिला की गांड को थाम लिया और इतनी तेजी से धक्के मारने लगा कि हर धक्के के साथ महिला की चीख निकलने लगी।
वो बेरहमी से उसकी चूत फाड़ने लगा।
15-20 धक्कों के बाद वो महिला की पीठ पर ढेर हो गया।
महिला की हालत खराब हो गई थी। महिला की चूत में लंड को खाली करने के बाद रामेश्वर उसके ऊपर उठ गया।
वो बोला- अब तू जा सकती है। कल सुबह समय से आ जाना।
ये कहकर रामेश्वर अपने कच्छे को ऊपर कर कोठड़ी से बाहर चला गया और ट्यूबवेल की धार के नीचे बैठकर नहाने लगा।
मजूदर महिला ने साड़ी बांधी और वह लंगड़ाती हुई वहां से चली गई।
रामेश्वर के लंड को चूत चुदाई का और बदन को ट्यूबवेल के ठंडे पानी का संतोष मिल गया था।
मन ही मन वो आनंद के भावों से भर गया था।
नहाने के बाद वो भी हवेली के लिए निकल गया।
घर जाकर उसको ज्ञानचंद के साथ भोजन करना था।
आज से ज्योति की पढ़ाई भी शुरू होने वाली थी।
विलेज पोर्न स्टोरी पर अपनी राय अवश्य दें। आप सबकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा।
विलेज पोर्न स्टोरी का अगला भाग: हरामी मास्टरजी- 4