हॉट मामी सेक्स कहानी में पढ़ें कि मैंने अपनी सेक्सी मामी के बूब्ज़ दबा दिए थे तो हंगामा हो गया था. उसी मामी ने खुद अपनी चूत को मुझसे कैसे चुदवाया?
दोस्तो, मैं असीम मेरी पिछली कहानी
पहली बार चूत चुदाई की बेताबी
में आप सभी से मुझे लगभग मिलजुली प्रतिक्रिया मिली. कुछ लोगों को यह कहानी थोड़ी उबाऊ लगी लेकिन आगे की कहानी को आकार देने के लिए वो ज़रूरी था।
और बहुत से लोगों का ढेर सारा प्यार भी मिला जिसके लिए आप सभी का धन्यवाद.
अपनी कहानी को आगे बढ़ाते हुए उसका आगे का भाग भेज रहा हूं, आशा है यह हॉट मामी सेक्स कहानी आपको पसंद आएगी.
जैसा आप सब जानते हैं कि मेरी मामी का नाम सुलोचना है, उन्हें प्यार से लोग सुलु कहते हैं, उनके बूब्स दबा देने के कारण भारी बवाल हो गया था और मेरा वहां आना-जाना छूट गया था.
इस मसले से मेरी अन्तर्वासना जग ज़ाहिर हो गई थी और उसी वजह से मेरे बड़े नाना की पोती रंजीता मुझसे चुदाने को आ गई थी.
हमारा पहला चुदाई कार्यक्रम बाथरूम के शॉवर में बना था.
खाना खाते समय मैंने रंजीता से पूछा था कि पट्टी क्यों बांधी थी तो वह ज़ोर से हंस दी.
मैंने उसे गाली दी- मादरचोद हंस क्यों रही है?
उसने जवाब दिया कि उसका महीना चल रहा है, इसलिए.
फिर मुझे भी हंसी आयी और मैंने कहा- साली एक नंबर की चुदक्कड़ है तू!
उसके बाद हम दोनों 5 बार मिले और 2 बार उसके साथ चुदाई कार्यक्रम भी हुआ.
करीब दो महीने बाद एक दिन मेरे दिमाग़ में ख्याल आया कि अगर नानी के घर का रास्ता वापस खुल जाए तो जब चाहे वहां जाकर रंजीता की और अपनी प्यास बुझा सकूंगा.
दिमाग़ के खुराफ़ाती घोड़े दौड़ने लगे. कोई हल समझ नहीं आया.
फिर वो हुआ, जिसका इन्तज़ार था.
मैंने सोचा कि कोई ऐसा आयोजन आए, जिसमें दोनों परिवार मिलें, तब काम बन सकता है.
नसीब से जल्दी ही एक शादी रिश्तेदारी में आ गई थी. मुझे इस मौके पर वहां से सुलू मामी के आने से पहले निकलना था लेकिन आप लोग तो अपने इस हरामी आइटम को जानते ही हो.
मैंने घर वालों को यह कह कर मना लिया कि मैं शादी में मामी के सामने नहीं जाऊंगा.
अब जो कहा है, वही करने जितना सीधा मैं हूं नहीं, घर वाले टेंशन में थे कि कहीं कुछ गड़बड़ न हो जाए.
फिर मेरी जान भी वहीं थी, तो सोचा एक आध बार बैटिंग भी हो जाएगी और इस बार रंजीता की पिच पर बारिश भी नहीं थी.
जैसा कि मैंने सोचा था, सुलू के आते ही मैं एक तरफ़ हो गया.
सबने राहत की सांस ली कि जैसा मैंने कहा, वैसा ही किया.
शिफॉन की साड़ी उनके गदराए बदन पर गजब ढा रही थी.
कोई भी देखने वाला यही कहेगा कि मेरी कोई गलती नहीं थी, कोई भी देख कर ख्यालों में तो चोद ही देगा उन्हें.
उनको दूर से देखने पर ऐसा लगा जैसे वो किसी को ढूंढ रही थीं.
मेरे दिमाग़ के सारे तार ढीले हो गए, ये सोच कर कि अब इनके दिमाग़ में क्या पक रहा है.
इतने में रंजीता वहां आ गयी- क्या देख रहा है भोसड़ी के?
वो मेरे कान के पास आकर धीरे से बोलने लगी.
मैंने कहा- तुझे ही ढूंढ रहा था छिनाल.
उसने कहा- मादरचोद, जितनी ज़ुबान चलाता है, उतना लंड चलाया कर!
सुन कर मुझे हंसी आ गयी.
जवाब में मैंने कहा- मैं तो लंड चला लूं, तेरी चूत का गुटका खाना बंद तो हो पहले!
ये सुन कर वो अपनी हंसी रोक नहीं सकी.
सुनहरी और सफ़ेद रंग के लॉन्ग ड्रेस में वो एकदम धमाल लग रही थी.
पर मेरा ध्यान सुलू की तरफ़ लगा था और तभी रंजीता को उसकी सहेलियां बुला ले गईं.
कुछ वक़्त बाद मुझे ऐसा लगा कि सुलू की नजरें शायद मुझे ही ढूंढ रही हैं.
अब फिर से दिमाग़ के दोनों हिस्से आपस में भिड़ गए और हमेशा की तरह गंदे विचार वाला हिस्सा जीत गया.
फाइनल ये हुआ कि उनके सामने आना है, फिर देखते हैं कि क्या होता है.
मैं मामी से अकेले निकलने का मौका देख रहा था और मुझे मिला भी.
उनकी ड्रेस पर कुछ लग गया था, जिसे साफ़ करने के लिए उन्हें वॉशरूम जाना था.
मैं पहले ही से वॉशरूम के पास जाकर खड़ा हो गया.
जब वो ड्रेस साफ़ करके वहां से वापस हो रही थीं, उसी वक़्त मैं उनके सामने चला गया; इस बात का ध्यान रखते हुए कि ये ऐसा लगे कि अनजाने में हुआ हो.
मुझे अचानक सामने देख कर वो एक पल के लिए रुक गईं.
मामी ने मुझे देखा, फिर दाएं बाएं देखा, मुझे फिर से देखा और आगे बढ़ गईं.
मेरे मन में ‘दिल सम्भल जा ज़रा …’ गाना बजने लगा, एक साथ दिमाग़ में कई सवाल घूमने लगे.
मुझे कुछ समझ नहीं आया कि आख़िर हुआ क्या?
इस घटना के बाद ऐसा लग रहा था कि पहले के मुक़ाबले अब वो पार्टी में ज़्यादा खुश दिख रही थीं.
इसी बीच मेरा फ़ोन बजा, मैंने देखा रंजीता का फ़ोन था.
उसने कहा- जुगाड़ मिल गयी है चल आ जा!
मैंने सोचा दूर की चिड़िया के चक्कर में हाथ की चिड़िया को कौन छोड़े.
बस मैं हीरो बनकर एक बार फिर से बहन चोदने चला गया.
अब रंजीता पूरी तरह से माहिर हो चुकी थी कि उसे कैसे और क्या करना है.
हमने घमासान चुदाई की लेकिन वक़्त और जगह का लिहाज़ करते हुए टेस्ट मैच और वन डे की जगह टी20 ही खेला.
चुदाई के बाद हम दोनों वापस अलग अलग दिशाओं में चले गए और मैं वापस मामी की रेकी करने लगा.
वो मुझे देख तो रही थीं नजरें चुराकर … लेकिन कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर हो क्या रहा है.
ख़ैर पार्टी खत्म हुई और हम सब घर आ गए.
कुछ 2-3 दिन बाद मां को नानी का फोन आया कि वो बुला रही हैं.
वो वहां गईं और जब वापस आईं, तो बहुत ख़ुश थीं.
वैसे तो कोई भी महिला मायके से आकर खुश ही होती है मगर ये ख़ुशी अलग थी.
मेरे पूछने से पहले ही पापा ने पूछ लिया कि इस खुशी की वजह क्या है?
उन्होंने कहा- बाद में बताऊंगी.
फिर वही 3-4 दिन बाद बड़े भाई से पूछना पड़ा कि क्या हुआ?
उन्होंने बताया कि मामी ने मां से माफ़ी मांगी है, कहा है कि वो तुझे यहां आने दें, उन्हें शादी में अच्छा नहीं लगा कि उनकी वजह से तू सबसे अलग रहे.
इसका सीधा मतलब मैंने ये निकाला कि अब रंजीता को हफ़्ते, दो हफ़्ते में चोद सकता हूँ.
मैंने अपनी ख़ुशी कंट्रोल की और धीरे से वहां से निकल गया.
अभी भी सवालों और दिमाग़ी ख्यालों में खोया हुआ था कि ये मामी का हृदय परिवर्तन क्यों हो गया है.
मैंने अपनी जासूस को फोन किया और कहा- ज़रा पता तो लगा कि कहानी क्या है?
उसने बताया कि मामी की बदनामी हो रही थी, लोग बार बार सवाल कर रहे थे मेरे बारे में कि वो आजकल दिखता नहीं. फिर भले ही ग़लती किसी की भी हो, बदनामी हमेशा लड़की को मिलती है.
मैंने सोचा कि चलो वैसा ही कुछ होगा.
दो तीन महीने बाद अब मेरा नानी के घर आना जाना सामान्य हो चुका था.
कभी कभार एक दो वाक्य मामी से भी बोल लेता था.
रंजीता ने मेरे वहां आने जाने पर अपनी पैंटी पहनना छोड़ दी थी क्योंकि मेरी नानी का घर और उसका घर सट के ही था.
कभी 5 मिनट तो कभी आधा घंटा, जैसे भी, जितना भी वक़्त मिलता हम अपना चुदाई कार्यक्रम चला रहे थे.
फिर आ गयी विदाई की घड़ी.
रंजीता की दूसरे शहर में नौकरी लग गयी, जिसमें उसे मोटी सैलरी मिलने वाली थी.
वो चली गयी तो नानी घर जाना मेरा फिर से कम हो गया.
एक दिन जब मैं बहुत दिनों बाद नानी के घर गया तो दिन में उधर कोई नहीं था.
तो सुलू मामी ने मुझसे बात करने के लिए मुझे ऊपर बुलाया.
मेरे हाथ पैर फ़ूलने लगे, मगर बुलाया था तो जाना ही था.
ऊपर गया तो देखा वो वही साड़ी पहनी थीं, जो उस दिन शादी में पहनी थी.
घर में होते हुए भी वो लिपस्टिक लगा रही थीं.
मैंने सोचा कि क्या ये कोई इशारा है? लेकिन मैं दूध का जला था, उनकी तरफ़ नज़र भी नहीं उठा रहा था.
‘बैठ …’ पास में रखे स्टूल पर इशारा करते हुए मामी ने कहा.
मैं किसी स्कूल के बच्चे की तरह उनकी बात सुन कर वहां बैठ गया.
“तूने यहां आना क्यों छोड़ दिया है? पहले की तरह आया-जाया कर, मैं कुछ नहीं कहूँगी.”
अब मैं कैसे बताता कि यहां आने जाने की वजह चली गयी है.
मैं चुपचाप उनकी बात सुनता रहा.
“जो हुआ उसका इतना अफ़सोस मत कर, मैं समझ सकती हूँ कि तुझ पर उस सब का क्या असर हुआ होगा.”
जब उन्होंने ये कहा तो मैंने उनकी तरफ़ नज़र उठा कर देखा, उनका चेहरा गंभीर था.
मेरे दिमाग़ में आईडिया आ गया, मैंने सोचा अब तो इनको सुलू मामी से सुलू जान बनाना है.
मैंने भी इमोशनल कार्ड खेल दिया और फिर से नज़र झुका कर रोने लगा.
अब सुलोचना मामी की समझ में कुछ नहीं आया कि वो क्या करें.
उन्होंने दाएं बाएं देखा और कहा- अरे कोई बात नहीं असीम, तुम रो नहीं!
मैं सिसकियां लेने लगा.
वो उठीं और मेरा सर अपने हाथों में लेकर कहने लगीं- प्लीज़ रो मत.
मैं फिर भी रोता रहा तो सांत्वना देने के लिए मेरा सर अपने हाथों से खींच कर अपने ऊपर कस लिया.
वो खड़ी हुई थीं और मैं बैठा हुआ था.
उन्होंने मेरा सर अपने पेट पर चिपका लिया.
उनकी भी आंखों में नमी भर आयी थी.
मैं समझ गया कि उन्हें अब अपराधबोध हो रहा है.
यही मौका था … धीरे से मैंने भी अपने दोनों हाथ उन पर लपेट दिए, जो इत्तफ़ाकन उनकी गांड के ऊपर से जा रहे थे.
लगभग एक मिनट तक हम इसी तरह चिपके रहे.
फिर मेरा रोना बन्द हुआ और उन्हें भी समझ आया कि अब उन्हें मुझे छोड़ देना चाहिए तो उन्होंने छोड़ दिया.
मैंने भी अपने हाथ हटा लिए और थोड़ा सा पीछे हो गया और वो भी थोड़ा पीछे हट कर मुँह फेर कर अपने आंसू पौंछने लगीं.
लगभग एक मिनट बाद जब वो वापस मुड़ीं, तो मेरी तरफ़ देखने लगीं.
मैं उठ कर वहां से जाने लगा.
वो आगे बढ़ीं और मेरा हाथ पकड़ कर मुझे रोक लिया.
फिर मुझे अपनी तरफ़ खींचने की कमज़ोर सी कोशिश करने लगीं.
मैं इशारा समझ गया और मैंने उन्हें बांहों में भर लिया.
लेकिन इस बार वो थोड़ी सी गर्म लग रही थीं.
मैंने उन्हें कस के बांहों में भरा, तो उन्होंने भी अपने दोनों हाथों को मेरी कमर से कस लिया.
फिर मानो वक़्त थम सा गया.
अबकी बार दोनों में से किसी की भी आंख में आंसू नहीं थे.
अब परेशानी यही थी कि अगला कदम क्या उठाया जाए.
कुछ देर बाद बहुत हिम्मत करके मैंने अपना एक हाथ उनके सीने पर रख दिया.
उन्होंने हाथ बढ़ाया कि मुझे रोकें, लेकिन आधे रास्ते में ही अपने हाथ को रोक लिया.
मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि ये सब अपने आप हो रहा है या सोच समझ कर!
लेकिन जो भी है, मैं इस वक़्त का मज़ा बिल्कुल भी खराब नहीं करना चाहता था.
इसलिए मामी के ब्लाउज के ऊपर से ही मैंने हल्के हल्के उनके बूब्स सहलाना शुरू कर दिए.
उन्होंने अपना बदन कड़क कर लिया.
मैंने उनके कान में धीरे से कहा- रिलैक्स.
ये सुनकर मामी ने अपना बदन ढीला छोड़ दिया.
सिंगार की टेबल के पास ही पलंग था.
मैंने उन्हें गोद में उठाया और बिस्तर तक ले गया.
उनके दोनों हाथ मेरे गले में थे और शर्म से अपना चेहरा मामी ने मेरी बगल में छुपा लिया था.
लेकिन उनकी गर्म सांसें मेरे सीने को छू रही थीं.
एक बात ज़रूर कहूंगा, गोदी में उठाना फिल्मों और कहानियों में बड़ा रोमांटिक लगता है, लेकिन असली ज़िंदगी में बहुत ज़्यादा मुश्किल होता है.
एक तो जिसे गोदी में उठाया उसका वज़न बैलेंस नहीं बनाने देता, दूसरा डर रहता है कि कहीं गिर गए तो लेने के देने हो जाएं.
जो भी हो, दूरी तो 4 कदम थी मगर ये ज़रूरी था, सो पूरा किया.
मैंने धीरे से मामी को पलंग पर लिटा दिया.
उन्होंने मुझे देखा, फिर अपना चेहरा दोनों हाथों से छुपा लिया.
फिर मैंने दोनों हाथों से उनके दोनों हाथों को उनके चेहरे से हटाया, उन्होंने आंखें बंद कर रखी थीं.
पहली बार मैं उन्हें बिस्तर पर लेटा हुआ देख रहा था.
उनका बदन भरा हुआ, चमकदार चेहरा शर्म से लाल हो रहा था.
लेटी हुई अवस्था में उनके बूब्स बड़े और बहुत ज़्यादा कड़क नहीं दिख रहे थे.
उन्होंने धीरे से आंखें खोलीं और मुझे देखा.
मैं अपना चेहरा उनके मुँह के पास लेकर गया.
एक बार फिर से उन्होंने आंखें बंद करके चुम्बन के लिए सहमति प्रदान की.
ये ग्रीन सिग्नल देख कर मैं कहां रुकने वाला था.
मैंने झट से अपने होंठ उनके होंठों से चिपका दिए.
रंजीता का जो चुम्बन लिया था, उसमें और इसमें बहुत ज़्यादा फ़र्क था.
सुलोचना मामी के होंठ और भी ज़्यादा नर्म और मोटे थे. जैसे उनके अन्दर कोई रस भरा हो.
फिर धीरे से उन्होंने अपने दांत मेरे होंठों पर गड़ा दिए.
इस अचानक हुए हमले के लिए मैं भी तैयार नहीं था, मतलब मामी के अन्दर भी इतनी उत्तेजना हो जाएगी, ये नहीं पता था.
उनकी इस अदा ने मेरे अन्दर थोड़ा और जोश भर दिया, फिर क्या था.
मैं उनके रसीले होंठों पर तो मानो टूट ही पड़ा था और वो मुस्कुरा रही थीं.
मैंने थोड़ा जोर से काटा, तो अह करके रह गईं.
मामी ने कहा- मेरी लिपस्टिक का रंग आ जाएगा होंठों पर.
मैंने कहा- अब तो देर हो गई, ये पहले बताना था.
ये सुन कर वो मुस्कुरा दीं.
मैंने एक बार फिर से उनके गदराये हुए मम्मों को दबाया.
उन्होंने मादक आवाज में कहा- शर्म नहीं आती तुझे अपने मामा के माल पर हाथ डालते हुए हरामी.
मामी खुल गई थीं.
मैंने कहा- आती थी, मगर अब नहीं.
ये कहते हुए मैं उनके ब्लाउज में हाथ डाल दिया और दूध सहलाते हुए कहा- लेकिन इन हरामियों की वजह से शर्म आना बंद हो गई.
इतना कहते हुए मैंने मामी का ब्लाउज खोल दिया.
अबकी बार उन्होंने मुझे अपने ऊपर से हटा दिया.
मुझे लगा फिर से इनके नाटक न शुरू हो जाएं … लेकिन हुआ कुछ और!
मामी ने मुझे हटा कर अपने ब्लाउज के साथ ब्रा भी खोल दी.
मैं समझ गया कि आग भरी है इस औरत में.
लेकिन मामी ब्रा खोल कर अपने मम्मों को हाथों से छुपा भी रही थीं.
मैंने भी अपनी अंडरवियर को छोड़ कर अपने सारे कपड़े उतार दिए.
वो मुझे देख रही थीं और मैं उन्हें.
मैंने मामी के हाथ पकड़े और दोनों हाथ सीने से हटा कर पकड़े रहा ताकि उनके स्तनों के दर्शन अच्छे से कर सकूं.
इस बार वो शर्माई नहीं, मेरी आंखों को और आंखों के अन्दर की वासना को देखती रहीं.
मैं उनके गदराए हुए बदन पर मांस और चर्बी से भरे उनके दोनों उभारों पर अपनी वासना भरी नजरें टिकाए रहा.
एक बार जी भर कर देखने के बाद मैंने मामी को वापस लिटाया और उनको गर्दन से चूमते हुए सीने तक आ गया.
उधर मैंने उनके एक बूब को मुँह में भर लिया.
फिर ये समझ आया कि छोटा मुँह और बड़ी बात … कहावत कैसे बनी होगी.
वो धीरे धीरे बेचैनी में मेरे बाल पकड़ कर खींच रही थीं मगर बहुत ज़्यादा जोर से नहीं.
मैंने उनकी चूची के निप्पल पर दांत गड़ा दिया, वो आह भरके रह गईं.
मगर मेरा मुँह हटाने की जगह उन्होंने मुझे अपने सीने में और ज़्यादा दबा दिया.
दूसरे निप्पल को मैं लगातार अपनी उंगली से भींचता रहा.
ये उन्हें पागल सा बना रहा था.
अब मामी से बर्दाश्त नहीं हो रहा था.
उन्होंने कहा- दराज में से कॉन्डम निकाल कर चढ़ा कर जल्दी से अन्दर डाल दो.
मुझे शरारत सूझी.
कमीनी ने बहुत नाटक किए थे.
तो मैंने कहा- ऐसे नहीं.
उन्होंने पूछा- फिर कैसे?
मैंने कहा- पहले मेरी चड्डी उतारो.
वो उठ कर मुझ पर चढ़ गईं और मेरी चड्डी फाड़ कर मेरा लौड़ा बाहर निकाल कर मुँह में भर लिया.
मैं एकदम सन्न रह गया.
उनकी ये अदा देख कर मुझे समझ ही नहीं आया कि मेरे लंड के लिए इतनी बौराई हुई थीं.
उन्होंने अपने गले के अन्दर तक मेरा लंड भर लिया था.
वो अहसास शब्दों में बताना मुश्किल हैं.
मामी का मुँह मेरे लौड़े पर नर्म और गर्म एक साथ महसूस हो रहा था और जब गले में लगता, तो गले के मांस की गर्मी महसूस होती कि कुछ बहुत ही मुलायम सी चीज़ से लंड जा लगा है.
ऐसा लग रहा था जैसे भीगी हुई रूई में लंड घुस गया हो. मगर वो रुई लंड का पानी सोखने पर सुकड़ी ही नहीं हो.
मैं खुद पर कंट्रोल बनाए हुए था कि कहीं झड़ न जाऊं.
कुछ देर अन्दर बाहर करने के बाद जब मामी ने अपनी लार से सना लंड मुँह से निकाला तो उस वक्त मामी एकदम किसी चुड़ैल की तरह लग रही थीं.
उन्होंने उठ कर कॉन्डम निकाल कर मेरे लौड़े पर चढ़ा दिया, फिर खुद ही मुझ पर चढ़ कर मेरे लंड को अपनी चूत पर टिका कर धीरे से अन्दर उतार लिया.
उनकी चूत इतनी गीली हो चुकी थी कि मेरा लंड एक बार में ही अन्दर उतरता चला गया.
फिर वो भूखी शेरनी की तरह मेरे लंड की सवारी करने लगीं.
उनकी चूत उनके मुँह से ज्यादा गर्म थी और मुझे तो जैसे उनकी चूत में जाते ही एक अलग ही दुनिया का अहसास हुआ.
वो धीरे धीरे सिसकारी भरने लगीं और फिर मामी ने अपनी रफ़्तार बढ़ा दी.
कमरे में मामी सेक्स की आह और फच फच की आवाज़ें बढ़ने लगीं.
मामी ने एकदम से अपनी रफ्तार बढ़ा दी और मेरे कंधों को कसके जकड़ लिया.
वो बहुत जोर से आह आह की आवाज़ कर रही थीं.
अचानक से वो झड़ गईं.
उन्होंने बदन ढीला छोड़ दिया.
मैं भी छूट चुका था और जैसे कोई इमारत धमाके के बाद गिरती है, वो मुझ पर गिर पड़ीं.
मामी की तेज़ चलती सांसें और मेरा पसीने में भीगा हुआ बदन, माहौल को संगीतमय बना रहे थे.
हम दोनों ही के चेहरे पर तृप्ति थी.
थोड़ी देर तक ऐसे ही लेटे रहने के बाद मामी ने मेरी तरफ़ गर्दन उठा कर देखा और मुस्कुराने लगीं.
वो कहने लगीं- सारे सवालों के जवाब मिलेंगे.
मैंने कहा- जो चाहिए बस वो मिलते रहें और किसी सवाल का जवाब नहीं चाहिए.
मामी ने कहा- एक नंबर का हरामी है तू!
मैंने कहा- तू चाहे तो मादरचोद भी कह ले, आख़िर मामी मां समान होती है.
ये सुनकर मामी ने कहा- कुत्ते, भड़वे, हरामज़ादे, बहुत बड़ा हरामी है तू!
मैंने कहा- बस तेरे लिए सब कुछ हूं.
ये सुन कर मामी ने मेरे होंठों को अपने मुँह में भर लिया और एक लम्बा सा चुम्बन जड़ दिया.
अब सवाल ये उठता था कि अगर उन्हें मुझसे चुदवाने में दिक्कत नहीं थी तो उन्होंने सारे हंगामे क्यों किए थे?
बल्कि उन्हें चोद कर तो मुझे ऐसा लग रहा था कि उन्हें भी मुझसे चुदवाने की गंभीर तड़प थी.
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