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देसी कामवाली की चूत चुदाई का मजा- 2

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हॉट मेड Xxx कहानी में पढ़ें कि मैंने चुदाई के लिए एक जवान कामवाली रखी थी. मेरी बीवी कुछ दिन के लिए मायके गयी तो उसकी चुदाई का प्रोग्राम बना.

दोस्तो, मैं दीपक कुमार अपनी सेक्स कहानी का अगला भाग लेकर हाजिर हूँ.
कहानी के पिछले भाग
ठण्डी बीवी से सेक्स का मजा नहीं मिलता
में अभी तक आपने पढ़ा था कि मैं एक मायूस जिंदगी जी रहा था और मेरे दोस्त नितिन ने मेरी मदद की.
उसने एक खूबसूरत नौकरानी को मेरे यहां काम पर लगवा दिया.

ऐसे ही 8 महीने बीत गए और मैं कविता को चोद नहीं पाया.

अब आगे हॉट मेड Xxx कहानी:

फिर मुझे मौका मिल गया और मेरी सास की तबीयत खराब होने के कारण मेरी बीवी कुछ दिनों के लिए अपने मायके जाने वाली थी.
ये खबर सुनकर मेरे बदन में जैसे एक बिजली सी दौड़ गई.
अब मैं अपने सारे अरमान पूरे कर सकता था.

जिस दिन मेरी बीवी जाने वाली थी, उसके एक दिन पहले ही मैंने कविता सारी बात बता दी और उससे कहा कि वो अपने घर में इस बारे में कुछ न बताए. और अपने माता पिता को कह दे कि मेरी बीवी मतलब उसकी मालकिन की तबीयत खराब है इसलिए कुछ दिन उनके घर पर ही रुकेगी.

ऐसा मैंने इसलिए बोलने के लिए कहा क्योंकि मैं कविता के साथ कुछ दिन अकेले बिताना चाहता था और अपने मन के सारे अरमान पूरे कर लेना चाहता था.
कविता भी ऐसा ही किया और अपने घर के लोगों को वैसा ही बताया जैसा मैंने कहा था.

उसके घर के लोग भी हम लोगों पर काफी विश्वास करते थे और उन्होंने कविता को मेरे घर पर रुकने की इजाजत दे दी.

अगले दिन मैंने दोपहर को ही अपनी बीवी को ट्रेन से रवाना कर दिया.
अब मैं घर पर अकेला था, दोपहर 2 बज रहे थे लेकिन कविता का कुछ पता नहीं था.
मुझे अभी भी लग रहा था कि पता नहीं वो आएगी या नहीं.
उसकी राह देखते हुए शाम के 6 बज चुके थे.
लेकिन वो नहीं आई.

मैंने सोचा कि क्या मैं उसके घर जाकर पता करूं और उसे अपने साथ ले आऊ.
लेकिन जल्दबाजी में मैं अभी कुछ नहीं करना चाहता था.
मैं घर पर लेटे हुए यही सब सोच रहा था कि दरवाजे की घंटी बजी.
और मैं दरवाजे की तरफ़ दौड़ पड़ा जैसे मेरी कोई मुराद पूरी हो गई थी.

जल्दी से मैंने दरवाजा खोला और सामने कविता एक सुंदर सी साड़ी पहने हाथ में एक बैग लिए खड़ी थी.
मैंने उसे अन्दर बुलाया और सीने से लगा लिया.

मैं- मैंने सोचा था कि तुम अब नहीं आओगी.
कविता- ऐसा नहीं था दिन भर तैयारी कर रही थी, आपके यहां रुकना जो था.

मैं- अच्छा क्या क्या तैयारी की?
कविता- कपड़े गंदे थे, उन्हें धोया, अपनी जरूरत का सामान इकट्ठा किया, तब आई.

मैं- अच्छा क्या क्या समान लाई, दिखाओ.
मैंने कविता के हाथ से बैग लिया और सोफे पर बैठकर देखने लगा.

बैग के अन्दर कुछ गाउन साड़ी ब्रा चड्डी और उसके कुछ और सामान थे.
मैं- बस इतने से सामान में दिन खत्म हो गया. वैसे ये ब्रा चड्डी और गाउन तो बिल्कुल नए लग रहे हैं.

कविता- जी, आज ही लेकर आई हूं.
मैं- अच्छा मुझे दिखाने के लिए?

कविता- ऐसा नहीं है, मेरे पास नहीं थे और जो थे वो पुराने होकर फट गए थे.
मैंने कविता का बैग अलग रखा और उसे अपनी तरफ़ खींचते हुए अपनी जांघों पर लेटा लिया.

मेरा एक हाथ उसके सीने पर था और उसके दूध को ब्लाउज के ऊपर से ही सहलाने लगा.
उसने फिर से मना किया और उठकर जाने लगी.

मेरे पूछने पर उसने कहा- पहले मैं खाना बना लेती हूँ. खाना खाने के बाद जो करना होगा, कर लेना.

उसने जल्दी से खाना तैयार किया और हम दोनों ने साथ में खाना खाया.
करीब 9 बजे हम लोग फ्री हो गए.

अब मुझसे बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं हो रहा था क्योंकि मुझे चुदाई किए जमाना हो गया था और मेरा दिल कविता को देख देखकर पागल हो रहा था.
मैं अब जल्दी से उसे चोद लेना चाहता था.

अब मैंने उसे अपनी बांहों में लिया और उसे चूमते हुए उसकी साड़ी निकाल दी.
जल्द ही मैंने उसका ब्लाऊज और पेटीकोट भी निकाल दिया और अपने कपड़े भी निकाल कर केवल चड्डी पहने उससे लिपट गया.

मेरा लंड पूरी तरह से खड़ा हो गया था और उससे लिपटते ही उसकी चड्डी के ऊपर से ही चूत में सट गया.
मैं कविता को बेइंतहा चूमने लगा औऱ कविता भी आज पहली बार अपने पूरे जोश में दिख रही थी.
वो भी मेरे बालों और पीठ को सहलाती हुई मुझे गर्म कर रही थी.

मैं उसकी चिकनी पीठ को सहलाते हुए अपना एक हाथ उसकी चड्डी में डालकर उसके चूतड़ को दबाने लगा.
कविता मुझसे बिल्कुल चिपकी जा रही थी.
आग उसके अन्दर भी जोरों की लगी हुई थी और वो भी मुझे अपने अन्दर समा लेना चाहती थी.

अब मैंने उसकी ब्रा का हुक खोल दिया और ब्रा को निकाल दिया.
उसके दोनों दूध तनकर आजाद हो गए.

मैं नीचे झुका और उसके दूध को अपने दोनों हाथों से थाम लिया और मसलते हुए एक निप्पल को मुँह में भर लिया.
आऊ ऊऊच्च ओह्ह आआ आआ आह की आवाज के साथ कविता ने मेरे सर को अपने मम्मों में दबा लिया.

आज कविता बिल्कुल भी नहीं शर्मा रही थी.
उसे भी किसी मर्द की उतनी ही जरूरत थी, जितनी मुझे किसी औरत की.

हम दोनों ही एक दूसरे को चूमने चाटने लगे और एक दूसरे के बदन को सहलाने लगे.
मैंने कविता का एक हाथ पकड़ा और अपने लंड पर रख दिया.

कविता भी बिना शर्माए चड्डी के ऊपर से ही मेरे लंड को सहलाने लगी.
मैं भी पूरे जोश में आकर उसके दूध को चूसने लगा.

जल्द ही कविता ने मेरा लंड चड्डी के बाहर निकाल लिया और आगे पीछे करने लगी.
उसने लंड के सुपारे को चमड़ी से बाहर निकाल लिया और अपने अंगूठे को सुपारे पर चलाने लगी.

उसके ऐसा करने से मेरी आह निकल गई और मैं उसके निप्पल को जोर जोर से चूसने लगा.
वो भी मस्ती से भर गई और अपना एक हाथ मेरी कमर में डाल कर मुझसे और चिपक गई. मेरे लंड को हाथ में थामकर अपने पेट और नाभि पर रगड़ने लगी.

दोस्तो चुदाई का मजा तभी आता है, जब आपका साथी भी आपका पूरा साथ दे और कविता मेरा पूरा साथ दे रही थी, जिससे हम दोनों को ही मजा आ रहा था.

मैं जोर जोर से उसके दोनों दूध को मसल रहा था और अब उसे थोड़ी तकलीफ भी हो रही थी.
उसने कहा- आराम से कीजिए दर्द होता है.
मैं- करने दे न मेरी जान, तू है ही इतनी मस्त कि रुका नहीं जाता. इतने दिन से इंतजार कर रहा था कि कब मौका मिले और तेरी जवानी को मसलूं.

वो- मुझे भी बहुत इंतजार था इस दिन का साहब, आप रोज मुझे छेड़ देते थे और मैं तड़पकर रह जाती थी.

मैं- तो आज मेरा पूरा साथ देगी ना तू!
वो- क्यों नहीं साहब आप जो बोलेंगे करूंगी, बस अपना प्यार हमेशा ऐसे ही देते रहिए.

मैं- क्यों नहीं जान, अब तो तू ही मेरी हर जरूरत पूरी करेगी और तेरी जवानी की गर्मी मैं ही मिटाऊंगा.
इतना कहते हुए मैंने उसकी चड्डी नीचे कर दी और कविता ने अपने पैरों से उसे उतार दिया.

कविता ने भी मेरी चड्डी नीचे कर दी और हम दोनों ही नंगे हो गए.

अब हम दोनों ही नंगे बदन एक दूसरे से चिपक गए और एक दूसरे को चूमने चाटने लगे.
मैं उसके दूध और बदन को सहला रहा था और कविता मेरा लंड जोर जोर से आगे पीछे कर रही थी.

फिर कविता नीचे की तरफ जाने लगी और मेरे लंड तक पहुंच कर अपने घुटनों पर बैठ गई और अपने हाथ से लंड थामकर आगे पीछे करने लगी.

तभी उसने मेरे सुपारे को बाहर निकाला और किसी कुल्फी की तरह अपने मुँह में भर लिया.
वो बेहद ही आराम से मेरे सुपारे को चूस रही थी.

आज पहली बार किसी लड़की ने मेरा लंड चूसा था क्योंकि मेरी बीवी ने कभी ऐसा नहीं किया था.
धीरे धीरे वो पूरा लंड अपने मुँह में भर कर चूसने लगी.
मुझे उस वक्त बिल्कुल स्वर्ग का आनन्द मिल रहा था.

मुझे एक ऐसी साथी मिल गई थी, जो मेरी तरह ही प्यासी थी और अब हम दोनों बहुत मजा लेने वाले थे.

कुछ देर बाद जब मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था तो मैंने उसे उठाया और बिस्तर पर लेटा दिया.
मैंने उसकी दोनों जांघों को फैला दिया और उसकी चूत पर झुक गया.
उसकी खुशबू लेने में ही मजा आ गया. फिर मैंने अपनी जीभ उसकी चूत पर चलानी शुरू कर दी और कविता भी इसका मजा लेने लगी.

कविता जोश में आकर अपने दूध को खुद ही मसलने लगी और अपने पैरों को पटकने लगी.
अब मैंने देर करना उचित नहीं समझा और झट से उसके ऊपर लेट गया.

मैंने उससे पूछा- तैयार हो न!
‘जी.’

‘डाल दूं?’
वो मुस्कुराती हुई बोली- जी बिल्कुल.

मैंने अपने सुपारे को उसकी चूत पर रगड़ना शुरू किया और कविता की आहें निकलने लगीं- ओह साहब आआह्ह … ओह आह्ह!

जल्द ही मैंने उसके चूतड़ों को पकड़ लिया और अपने पैरों से उसकी जांघों को फैला कर एक धक्का लगा दिया.

लंड चूत के छेद को चौड़ा करते हुए आधा अन्दर चला गया और कविता के मुँह से आह निकल गई ‘उउउ ईई मर गई आआ ह्हह …’

दुबारा से मैंने एक जोरदार धक्का लगा दिया और इस बार पूरा का पूरा लंड गहराई तक पहुंच गया.
मैंने अपने सीने को उसके दूध पर रख दिया और अपना वजन उस पर डाल दिया.
उसके दूध मेरे सीने के नीचे दब गए और मैं लंड को अन्दर बाहर करने लगा.

मैं कविता के चेहरे को देखकर उसकी आंखों में आंख डालकर बोला- कितनी जोर से करूं?
‘जितनी आपकी इच्छा करे.’

‘तुम्हें कोई दिक्कत तो नहीं होगी!’
‘होगी तो मैं अब सह लूंगी.’

मैंने हम्म कहा.
वो बहुत जोश में आकर बोली- जोर जोर से चोदो आप!

इतना सुनकर मैं भी जोश में आ गया और अपनी रफ्तार को बढ़ाता चला गया.
जल्द ही पूरा बिस्तर जोर जोर से हिलने लगा और पूरे कमरे में ‘आआह्ह्ह ऊऊऊ उई …’ की आवाज गूंज उठी.

मेरा पेट उसके पेट से इतनी जोर से टकरा रहा था कि फट फट फट की आवाज गूंज उठी.
मेरा लंड गपागप उसकी चूत में घुस रहा था.

वो आंख बंद करके लंड का पूरा मजा ले रही थी.
मैंने उससे कहा- आंख खोल और मुझे देख.

वो मेरी आंखों में देखने लगी.
मैंने कहा- कैसा लग रहा है?
वो- बहुत अच्छा लग रहा है … बस करते जाइए.

‘और जोर से चोदूं?’
‘हां चोदिए ना … और जोर से चोदिए.’

‘फाड़ दूंगा तेरी चूत.’
‘फाड़ दीजिए … आज बस चोदते रहिए.’

उसने अपने हाथ से मेरी कमर को कसकर पकड़ लिया और जल्दी जल्दी मेरी कमर हिलाने लगी.
मैं भी अपने पूरे जोश में आकर उसे चोदने लगा.

जल्द ही कविता झड़ गई और उसने मुझे अपने सीने से लगा लिया.

अभी भी मेरी रफ्तार कम नहीं हुई और कुछ देर चोदने के बाद मैं भी उसके अन्दर ही झड़ गया.
हम दोनों एक दूसरे से लिपट कर लेट गए और दोनों की सांसे तेजी से चलने लगीं.
पसीने से दोनों का बदन चिपचिपा रहा था.

इस जबरदस्त चुदाई के बाद कुछ देर तो मेरी हिम्मत नहीं हुई कि पलट कर उससे दूर हो जाता.
मेरा लंड सिकुड़ कर चूत से बाहर निकल आया.
जब थोड़ी हिम्मत आई तो मैं पलटा और बगल में लेट गया.

‘कैसा लगा कविता?’
कविता मेरी तरफ देख कर बोली- आज आपने इतने दिनों की प्यास बुझा दी. इतना अच्छा लगा कि बता नहीं सकती.

मैं- तुझे पाकर मैं भी काफी खुश हूँ कविता. आज से बस तू मेरा ऐसे ही साथ देगी, तो मेरी प्यास बुझती रहेगी.
‘क्यों नहीं दूंगी साहब, आप जैसा मर्द हर किसी को नहीं मिलता.’

‘अभी तक तू क्यों नहीं मिली थी.’
‘अब तो मिल गई हूं ना!’

मैं- कविता शायद हम एक दूसरे के लिए ही बने हैं. तुझमें भी चुदाई की गर्मी भरी हुई है … और मुझमें भी.
‘जी साहब.’

‘अभी और चोदना है तुझे.’
‘चोद लीजिए ना साहब. मेरा भी मन कहां भरा है.’

इतना कहते हुए हम दोनों फिर से लिपट गए और चुदाई का दूसरा दौर शुरू हो गया.
दो बार चोदने में मेरी हालत खराब हो गई और उसके बाद हम दोनों ही सो गए.

दोस्तो अगली सुबह क्या हुआ और कैसे मैंने कविता की गांड मारी, इसके साथ ही ऐसा क्या हुआ कि कविता को मेरी वजह से एक साथ दो लंड लेने पड़े.

ये सब आप हॉट मेड Xxx कहानी के अगले भाग में पढ़िए. मुझे मेल करना न भूलें.
धन्यवाद.
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हॉट मेड Xxx कहानी का अगला भाग: देसी कामवाली की चुत चुदाई का मजा- 3

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