दोस्त सेक्स कहानी मेरे कॉलेज टाइम के निकट मित्र के साथ सेक्स की है. यह मेरा पहला सेक्स था. मुझे पता ही नहीं चला कि मैं खेल खेल में अपने दोस्त से चुद गयी.
यह कहानी सुनें.
सभी पाठकों को सारिका का प्रणाम.
अभी तक मैंने यहाँ कई कहानियाँ पढ़ीं परंतु अपनी कहानी लिखने का यह पहला अनुभव है.
यह दोस्त सेक्स कहानी है मेरे ग्रॅजुयेशन के पहले साल की!
मैं होस्टल में नई नई रहने आई थी. कुछ दोस्त भी बन गये थे. हमारे ग्रुप में लड़के और लड़कियाँ दोनों ही थे.
लड़के लड़कियों के बीच इतना खुला माहौल मैं पहली बार देख रही थी.
और अच्छी फिगर वाली लड़कियों और प्रथम वर्ष के नये माल पे तो वैसे ही सबकी नज़र रहती है.
सेक्सी फिगर और अपने ऊपर सबकी नज़र ने वैसे भी मुझको थोड़ा हवा में उड़ा दिया था.
हर कोई मुझसे दोस्ती करना चाहता था.
सबसे ही मेरी अच्छी दोस्ती थी पर संजय से कुछ ज़्यादा ही हो गयी थी.
हमारे बीच ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था पर हां शायद दोस्त से तो कुछ ज़्यादा हो गये थे.
पहले शायद मुझे अपने बारे में बता देना चाहिए.
मैं 32-26-34 साइज़ की एक नॉर्मल सेक्सी पर बहुत क्यूट सी लड़की हूँ.
जिसको हॉस्टल की लाइफ और वहाँ के लोगो ने बहुत कुछ बदल दिया था.
पहली परीक्षा के बाद घर जाने के लिए ट्रेन का रेज़र्वेशन कराना था.
वही बात चल रही थी कि संजय ने कहा के यह काम वो करा देगा.
मैं भी निश्चिंत हो गयी थी.
होते होते परीक्षा का अंतिम दिन भी आ गया.
उसने पहले ही बोल दिया था कि परीक्षा के बाद मेरे घर से टिकट ले लेना.
दोपहर को परीक्षा समाप्त होने के बाद मैं उसी के घर जा रही थी.
उस दिन संजय का जन्मदिन भी था तो सोचा उसके लिए कुछ फूल ले चला जाए और साथ ही 1 गिफ्ट!
पर गिफ्ट कुछ समझ नहीं आ रहा था.
फिर सोचा कि क्यों ना कुछ नया ही गिफ्ट दें.
एक किस …
हां ये ठीक रहेगा.
मैंने अपने आप से कहा.
पर फिर अंदर से आवाज़ आई ‘कर पाओगी?’
रास्ते भर इसी की हिम्मत जुटाती उसके घर पहुँची जहाँ वो अकेला रहता था.
वहाँ पहुँचकर जैसे ही उसने दरवाज़ा खोला, मेरे दिल की धड़कन और तेज़ हो गयी यह सोचकर कि मैं क्या प्लान बनाकर आई हूँ.
लेकिन वो काफ़ी नार्मल था और फूल देखकर बोला- ये क्या मेरे लिए?
और मुस्कुराते हुए उसने फूल ले लिये.
हम अंदर आ गये.
मैं कुछ अजीब हो गयी थी.
किस यानि चुम्बन के बारे में सोच सोच के दिल की धड़कनें बढ़ी हुई थीं.
कुछ समझ नहीं आ रहा था कि कैसे शुरू किया जाए!
और इसी हड़बड़ाहट में अचानक उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए.
वो भी अचानक हुए इस हमले से कुछ हड़बड़ा गया.
पर मैंने यह किस जारी रखा और कुछ ही देर में उसके होंठों ने अपना कमाल दिखाना शुरू कर दिया.
अब मैं सिर्फ़ मज़ा ले रही थी.
यह एक बहुत ही लंबा और गहरा किस बनता जा रहा था.
मैं तो होश खो बैठी थी.
पता नहीं क्या क्या हो रहा था.
मैंने खुद को अलग किया और थोड़ा संयत भी!
अभी तो उससे आँख भी नहीं मिला पा रही थी.
पर उसने कुछ नहीं कहा जिससे मैं वापस खुद को नार्मल कर पाई.
फिर कुछ देर हम लोग ऐसे ही इधर उधर की बातें करते रहे.
मेरी ट्रेन का समय हो रहा था इसलिए मैंने उससे टिकट माँगा.
उसने मुझे टिकेट दिया, मैंने अपना सामान उठाया और चलने के लिए तैयार हो गयी.
तभी उसने बोला एक बार टिकेट देख तो लो.
मैंने टिकेट देखा तो चौंक गयी.
उसमें तारीख अगले दिन की पड़ी थी.
मैंने उसको बोला- ये क्या किया? मैंने तुमको बोला था कि मुझे आज ही जाना है.
तो उसने कहा- तुम मुझे मेरे जन्मदिन पे अकेला छोड़कर चली जाओगी?
“पर पूरा एक दिन मैं करूँगी क्या? हास्टेल में भी सब जा चुके होंगे!” मैंने कहा.
तो उसने कहा- यहीं रुक जाओ, मज़े करेंगे.
“यहाँ … किसी हालत में नहीं!” मैंने कहा.
तो वो बोला- क्यों डर लग रहा है?
मैंने सोचा कि मेरी मर्ज़ी के बगैर मेरे साथ कोई कुछ नहीं कर सकता तो कुछ मज़े ही कर लिए जायें. और वैसे भी हास्टेल जा नहीं सकते और कोई चारा है नहीं! फिर डरना कैसा!
बस यही सब सोच के मैंने हाँ कर दी.
मेरी हाँ सुनते ही उसने कहा- अब देखो … हमारी शाम क्या रंगीन बनाता हूँ. कभी भूल नहीं पाओगी.
इतना कहकर वो कुछ इंतज़ाम करने बाहर चला गया और मैं वहाँ अकेली रह गयी.
अब इतनी देर मैं क्या करूं … यही सोच रही थी.
थोड़ा घर का जायज़ा लिया. कुछ अश्लील पत्रिकाएं मिली जिनको कुछ देर पलटा और वापस रख दिया.
कुल मिला कर उसका घर ये बता रहा था कि लड़का रंगीन मिज़ाज है और आज की रात मज़ेदार होने वाली है.
पर ये कतई नहीं पता था कि इसको रंगीन मैं ही बनाने वाली हूँ और मेरी ही ली जाने वाली है.
कुछ ही देर में संजय वापस आ गया.
उसके साथ 1 वोड्का की बॉट्ल और पेन ड्राइव में कुछ मूवीस और साथ ही कुछ खाने पीने का सामान था.
थोड़ी ही देर में सब कुछ सेट हो गया था.
2 ग्लास वोड्का के साथ तैयार हो चुके थे.
मैंने मना किया कि मैं नहीं पीती हालाँकि हास्टेल में सब ट्राइ किया था.
उसने कहा- एक से कुछ नहीं होता. आज तक नहीं किया तो आज कर लो.
और थोड़ी ही देर में ग्लास होंठों से लगा दिया गया.
संजय- तुम्हारी लिपस्टिक और होंठों दोनों का ही टेस्ट काफ़ी मज़ेदार है. ज़रा इस ग्लास को भी मौका दो.
उसकी बातें सुनकर मैंने शर्म से मुंह दूसरी ओर घुमा लिया और ग्लास को होंठों को चखने का मौका मिल गया.
हम लोग आराम से पी रहे थे और कॉलेज की बातें चल रही थी.
वो किसी काम से अंदर गया तो मैंने सोचा कि कोई मूवी देखी जाए और पेन ड्राइव को लॅपटॉप में लगा दिया.
पता ही नहीं था की कौन सी मूवीस हैं उसमें … तो एक को चालू किया.
पता नहीं कहाँ से शुरू हो गयी वो मूवी … कुछ समझ नहीं आ रहा था.
तब तक संजय भी वापस आ गया और थोड़ी ही देर में फिल्म में लड़की ने अपने कपड़े उतारने शुरू कर दिए.
मुझे एक झटका सा लगा, वो तो एक ब्लू फिल्म थी.
लड़की कपड़े उतार के तैयार खड़ी थी.
मैंने उसको हड़काया कि ये फिल्म लाए हो तुम?
उसने कहा- अरे यार, एक फ्रेंड से लाया था. पता नहीं उसने क्या डाल दिया. वो दोस्त सेक्स पसंद करता है तो उसने डाल दी होगी.
“अब इसको बंद तो करो!” मैंने कहा.
जब तक वो बंद होती, तक काफ़ी कुछ दिख चुका था. जिसको मैं देख तो रही थी पर संजय को यही दिखाना चाहती थी कि मेरी नज़र उधर नहीं है.
हम लोग फिर से पीने और आराम से बातें करने लगे.
अचानक उसने अपने बर्थ डे गिफ्ट की माँग रख दी.
मैं- दिया तो था आते ही!
संजय- क्या?
मैं- किस और क्या?
संजय- वो किसे चाहिए.
ये सुनकर मुझे लगा कि मेरे दोस्त को सेक्स में दिलचस्पी नहीं है.
मैं- तो तुम ही बोलो तुमको क्या चाहिए? दे दूँगी.
संजय- सोच लो?
मैंने सोचा कि जो दे रही हूँ उसमें ही दिलचस्पी नहीं है तो फिर कुछ भी ले ले.
मैं- सोच लिया.
उसकी आँखें मेरी आँखों से नीचे जाने लगी और थोड़ा नीचे जाकर टी शर्ट के अंदर मेरी चूचियों पर रुक गयी.
मैंने हड़बड़ा के पूछा- क्या?
उसने मुस्कुराते हुआ कहा- ज़्यादा कुछ नहीं बस ये टीशर्ट.
मेरी जान में जान आई.
‘पर मैं ये टी शर्ट भी कैसे दे सकती हूँ?’ यही सोचकर मैंने उसे घूरा.
पर कुछ देर तक चले वाद विवाद में उसने याद दिलाया कि मैंने ही बोला था सोच लिया.
मैंने भी कुछ मज़े लेने की सोच कर उसकी बात को मान लिया और धीरे धीरे टी शर्ट को ऊपर उठाया.
उसकी आँखों में चमक आ गयी थी.
और फिर टी शर्ट सर के ऊपर से निकल के हाथ में आ गयी और उसकी आँखें ब्रा के अंदर से झाँकती चूचियों पर टिक गयी.
मैंने पूछा- क्या देख रहे हो?
वो बोला- अपना खूबसूरत गिफ्ट!
मैं शर्म से गड़ी जा रही थी.
उसका ध्यान हटाने के लिए मैंने बोला- गिफ्ट यहाँ नहीं बल्कि ये टीशर्ट है.
संजय- ये टीशर्ट मैं ले लेता हूँ. तुम अपना दूसरा पेग लो.
बिना टीशर्ट के ही उस घर में घूमते मैं अपने आप को नार्मल कर रही थी और वो मज़े ले रहा था.
थोड़ी देर तक ऐसे ही चलता रहा.
सब नार्मल सा हो गया था कि उसने मेरी जीन्स की भी माँग रख दी.
मैंने उसको बोला- थप्पड़ खाना है क्या?
पर उसके वाद विवाद के आगे ज़्यादा देर तक टिक नहीं सकी.
फिर भी उसको साफ मना कर दिया- नहीं … ये नहीं मिल सकती.
उसने पूछा- क्यों?
तो मेरे पास कोई जवाब नहीं था तो उसको बोला- क्योंकि इसके बाद तुम और आगे बढ़ोगे फिर कुछ और चाहिएगा.
लेकिन उसने प्रॉमिस किया कि आगे कुछ नहीं माँगेगा.
थोड़ी देर के बाद मैं भी मज़ा लेने के लिए मान ही गयी.
जीन्स का बटन खुला, ज़िप नीचे हुई और जीन्स को उसने मेरी एकदम चिकनी टाँगों से खींचकर बाहर निकाल दिया.
उसके सामने ऐसे केवल ब्रा और पैंटी में खड़े हुए ऐसे लग रहा था जैसे कुछ पहना ही ना हो.
अब कुछ भी नार्मल नहीं रह गया था.
उसकी नज़रें जिस्म के हर हिस्से को छू रही थी और मैं असहज हो रही थी.
मेरी इस दशा को भाँपते हुए उसने रोशनी कुछ कम कर दी और हल्का सा म्यूज़िक चला दिया और मेरे हाथों को लेकर डाँस शुरू कर दिया.
थोड़ी देर ऐसे ही चलता रहा.
मुझे बहुत मज़ा आ रहा था.
पता नहीं ये उस वोड्का का असर था, कम रोशनी का, म्यूज़िक का … या फिर उसका … पर मेरी आँखें बंद हो चली थी और मैं पूरी तरह से उस माहौल में खो चुकी थी.
मेरे दोनों हाथ उसके कंधों पर थे और उसके दोनों हाथ मेरी कमर पे जो की पूरी पीठ का जायज़ा ले रहे थे. कभी कभी नीचे पेंटी तक भी आ जाते थे.
ऊपर पीठ पर केवल एक ही चीज़ थी जो उसके हाथों में बार बार अटक रही थी और वो थी ब्रा स्ट्रैप.
अचानक उसने मेरी ब्रा का हुक खोल दिया.
और जब तक मैं कुछ समझ पाती उस ब्रा को मेरे हाथ जो सीधे उसके कंधों पे रखे थे, उनसे आसानी के साथ सरका के बाहर निकाल दिया.
मेरी तो कुछ समझ ही नहीं आया कि ये हुआ क्या.
और उसकी नज़रें अब उन गोल 32 साइज़ के उभारों पे आकर टिक गयीं जो उसने अभी अभी ब्रा की क़ैद से आज़ाद किए थे.
मैं उससे ब्रा वापस माँग रही थी.
उसने उन उभारों को देखकर कहा- क्या मस्त चीज़ है.
तब मुझे याद आया कि इनको छुपाना भी है.
मेरे हाथ अपने आप उनको छुपाने के लिए ऊपर चले गये.
मैं अभी भी उससे ब्रा वापस माँग रही थी और वो सुनने के बजाय मेरी टाँगों के पास बैठ गया और मेरे तन पे बचे एक मात्र वस्त्र मेरी पैंटी को धीरे धीरे नीचे सरकाने लगा.
मैं अपने तन पे बचे इस अंतिम वस्त्र को किसी भी कीमत पे उतरने नहीं देना चाहती थी इसलिए उसको दोनों हाथों से कसकर पकड़ लिया.
उसने ऊपर एक बार फिर से मेरी चूचियों की तरफ देखा और एक सीटी मारी और बोला- वाह, तेरे तो निप्पल भी बड़े मस्त और खड़े हैं.
‘ओह्ह …’ ये तो फिर से खुल गये.
बिना कुछ सोचे मेरे हाथ दुगनी गति से वापस वहीं पहुँच गये और उसके हाथ उसी गति से नीचे … वो भी मेरी पैंटी के साथ.
मेरी पैंटी 26 साइज़ की कमर को छोड़के 34 साइज़ के चूतड़ों से होती हुई अब मेरे पैरों में पड़ी थी.
मेरे शरीर पे कपड़ों के नाम पर अब कुछ भी नहीं बचा था और उसकी नज़र मेरी टाँगों के जोड़ पे थी जहाँ से मेरी क्लीन शेव चूत की शुरुआत की पर्याप्त झलक मिल रही थी.
एक 32-26-34 साइज़ की सीधी सादी शर्मीली लड़की बिना उसकी मर्ज़ी के और साथ ही बिना किसी ज़ोर ज़बरदस्ती के पूरी नंगी की जा चुकी थी.
मैं अपने बर्थ सूट में उसके सामने अलफ नंगी खड़ी थी और वो ऊपर से नीचे तक मेरे प्रत्येक अंग को निहार रहा था.
मैंने एक हाथ नीचे रखा और एक ऊपर ही रहने दिया.
शायद मैं अपने उन दो हाथों से पूरे तन छुपाने की असफल कोशिश कर रही थी जिसका वो भरपूर लुत्फ़ उठा रहा था.
कुछ ही पलों में मेरी ये समझ आ चुका था कि ये कोशिश बेकार है इसलिए मैं पीछे घूम गयी.
अब उसकी आँखों के लिए पीछे का नज़ारा उपलब्ध था.
पहले उसने अपने हाथों से पीछे का भरपूर जायज़ा लिया सब कुछ चेक करने के बाद मेरे चूतड़ कुछ ज़्यादा ही पसंद आ गये जिनपे कई चमाट पड़े और पीछे से उसने मुझे जकड़ लिया और आगे हाथ लाकर उसका भी लुत्फ़ लेने लगा.
मुझे अपनी गर्दन पे उसकी साँसों की गर्माहट और कमर पे कुछ कड़ा सा महसूस हो रहा था.
उसके हाथों को आगे मेरे तन का नाप लेने में मेरे हाथ सहयोग नहीं कर रहे थे.
मुझे अभी भी लग रहा था कि मुझे मेरी ब्रा पैंटी वापस मिल जाएगी और हम शरीफ बच्चों की तरह रात बिताएँगे.
उसके हाथ जब पीछे से अपनी नाप जोख पूरी कर चुके तो वो वापस जाके बेड पे आराम से बैठ गया.
उसे किसी बात की जल्दी नहीं थी.
जब मैंने फिर से उससे अपनी ब्रा पैंटी वापस माँगी तो उसने कहा- यहाँ आओ और ले लो.
अब तक ये तो मेरी समझ में आ चुका था कि मुझे मेरे कपड़े आसानी से तो नहीं मिलने वाले … इसलिए उनको लेने के लिए इसके पास जाना ही पड़ेगा.
मैं उसकी तरफ घूमी वैसे ही एक हाथ ऊपर और एक हाथ नीचे रखे हुए.
मैंने पूछा- कहाँ हैं मेरी ब्रा और पैंटी?
उसने अपने लोअर की तरफ इशारा किया जो कुछ फूला हुआ तो नज़र आ रहा था पर ये समझ नहीं आ रहा था कि ये मेरी ब्रा और पैंटी वहाँ रखे होने की वजह से फूला है या फिर मेरी ब्रा और पैंटी के मेरे शरीर पे ना होने की वजह से.
वजह कोई भी हो … देखना तो पड़ेगा ही.
वैसे ही हाथ रखे हुए मैं धीरे धीरे चलते हुए बेड के पास आ गयी.
अब उसका लोअर चेक करने के लिए हाथ हटाना मजबूरी थी.
जैसे ही मैंने हाथ हटाए, वो बोला- तू नंगी ही अच्छी लगती है.
और उन्हीं जगहों पर अब उसके हाथ आ गये थे.
जितनी जल्दी हो सके मैं अपने ब्रा और पैंटी को वापस लेना चाहती थी इसलिए उसके लोअर को नीचे किया और वहाँ पे सिर्फ़ काले नाग के जैसे काला मोटा लंबा लहराता हुआ उसका लिंग मेरी आँखों के सामने था.
दिमाग़ कह रहा था कि उधर ना देखो!
पर नज़र वहाँ से हट ही नहीं रही थी.
और मेरी टाँगों के बीच की जगह गीली होने लगी थी.
मेरी साँसें भारी होने लगी थी.
मैंने नज़रें दूसरी ओर घुमा ली तो वो बोला- उसको देखने पे कोई टैक्स नहीं है. हाथ में पकड़ो, मुंह में लो या फिर यहाँ!
अपने नीचे वाले हाथ की उंगली को मेरी दोनों टाँगों के बीच घुसाते हुए बोला.
“ये भी कोई मुंह में लेने की चीज़ है?” मैंने कहा.
वो बोला- तो वहाँ ले लो जहाँ लेने की चीज़ है.
मैंने शर्म से लाल मुंह को दूसरी ओर घुमा लिया.
पर अभी तो ना जाने क्या क्या लाल होना था.
इस सब में अब मुझे भी मज़ा आने लगा था और मेरा मन कर रहा था कि मैं भी सब कुछ करूँ पर ऐसा दिखा नहीं सकती थी उसको!
उसने मेरा हाथ पकड़ के अपने लंड पे रख दिया और खुद मेरी गोल चूचियों से खेलने लगा जिसके निप्पल एकदम तन के खड़े हो गये थे और उसी का साथ दे रहे थे.
उसकी उंगलियाँ इन निप्पल की हरकतों को और बढ़ावा दे रही थी.
उसने अपने उंगलियों के बीच दोनों निप्पल को पकड़ के अपनी तरफ खींचा और मैं उसपर झुकती चली गयी.
वो बोला- जिस तरह ये निप्पल मसले जा रहे हैं, तू भी मसली जाएगी, अब तू वही करेगी जो मैं कहूँगा. या तो तू लौड़ा मुंह में लेगी या अपनी इन मस्त चूचियों के बीच लेकर मज़ा देगी.
मन तो मेरा भी यही करने का हो रहा था … पर बोली कुछ नहीं.
तो उसने एक निप्पल को इतनी ज़ोर से दबाया कि मेरी जान ही निकल गयी.
उसने फिर पूछा- बोल साली?
मेरी तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा था.
पर मुंह में लेने से अच्छा मैंने दूसरी बात को मान लिया.
पर करना कैसे है कुछ समझ नहीं आ रहा था.
कई तरह से ट्राइ किया पर उनके बीच में लेके हिलना आसान नहीं था.
तो उसने बताया- मेरे ऊपर 69 की पोज़िशन में लेट जाओ.
सब कुछ काफ़ी नया था मेरे लिए इसलिए उसने जो कहा, मानती जा रही थी.
अब तक वो अपने सारे कपड़े उतार के संपूर्ण नग्न अवस्था में लेटा हुआ था.
मैं भी अपनी एक टाँग उसके एक तरफ और दूसरी टाँग उसके दूसरी तरफ करके उसपे कुछ इस तरह से लेटती चली गयी कि उसका लिंग मेरी चूचियाँ के बीच में आ जाए.
पर ये सब करने में पता ही नहीं चला कि मेरे चूतड़ उसके सीने पे थे और दोनों टाँगें खुली हुई उसकी आँखों के सामने थीं.
मैं उसके लौड़े को अपनी चूचियों के बीच में लेने के प्रयास में लगी थी जबकि उसके दोनों हाथ मेरे चूतड़ पर थे और उसपे पड़ने वाले चमाट उनको लाल कर रहे थे.
उसकी एक उंगली चूतड़ों के बीच में फिसलती हुई मेरी गाँड तक पहुँच गयी.
मैं पूरी सिहर उठी.
पर उसने वहाँ ज़्यादा समय ना लगाते हुए उंगली को और नीचे कर दिया.
मुझे लगता था कि इस पोज़िशन में मेरी चूत उसको नहीं दिखेगी और वो पूरी तरह से सुरक्षित है.
अगले ही पल मेरा ये भ्रम भी टूट गया जैसे ही उसने अपनी उंगली उस रस से सराबोर चूत के द्वार पे टिका दी.
मैं अब कोई भी हरकत कर पाने की अवस्था में नहीं रह गयी थी.
उसकी उंगली उस द्वार को बिना खटखटाए ही अंदर प्रवेश कर गयी.
आनंद की यह अनुभूति अविस्मरणीय थी और चूत से रस इस प्रकार टपक रहा था मानो नल खुला हो और उसकी उंगली अंदर बाहर होना शुरू हो गयी थी.
कुछ ही देर में मेरी चूत ने उसके सीने पे सब गीला कर दिया जिसको उसने साफ करने के लिए कहा.
मैं कपड़ा ढूँढने लगी तो उसने बोला- अपने इस रस को नंगी लड़कियाँ कपड़े से नहीं बल्कि चाट के साफ करती हैं.
और मेरे बाल पकड़ के मेरा मुंह अपने सीने से सटा दिया.
थोड़ी ही देर में मैं अपने रस का स्वाद लेकर उसको चाट कर साफ कर रही थी.
उसने मुझको अपनी जांघों पर बैठा रखा था और मेरे एक हाथ में अपना लौड़ा पकड़ा रखा था और अपने एक हाथ से मेरी चूचियों को निरंतर मसल रहा था.
उसका लौड़ा किसी गर्म रॉड के समान मेरे हाथ में अपनी गर्माहट का अहसास करा रहा था जिसको मैं ऊपर नीचे करने लगी.
ऐसे में उसकी खाल नीचे हो रही थी और अंदर से एकदम चिकना लंड बाहर झाँक रहा था.
कुछ ही देर में मुझे नीचे लिटाकर लंड मेरी चिकनी और गीली चूत पे रगड़ा जा रहा था.
ये एक अत्यंत आनंददायी अवस्था थी.
अचानक एक बार रगड़ते रगड़ते उसको अंदर प्रवेश करा दिया गया.
मेरी चूचियों को दबाते और निप्पल को मसलते हुए उसकी गति और हमारा मज़ा बढ़ता जा रहा था.
और फिर कम से कम 10 मिनट तक लगातार चले इस कार्यक्रम ने दोनों को चरम सुख तक पहुँचाया और मेरी ले ली गयी.
इसके बाद भी उस रात में और एक बार मेरी ली गयी.
अगले दिन वापस जाने तक मुझे मेरे कपड़े नहीं मिले बल्कि हर बार कपड़ों के नाम पे या तो चूतड़ों पर चमाट मिले या निप्पल उमेठे गये.
कुल मिला के टिकेट को पूरी तरह वसूला गया.
आशा है आप लोगों को यह दोस्त सेक्स कहानी पसंद आई होगी.
कमेंट सेक्शन में ज़रूर बतायें.
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