इस हॉट बॉलीवुड सेक्स कहानी में मैं दाइशा पाटनी का फैन हूँ. मैं उसको विज्ञापनों में देख कर मुठ मारा करता था। एक रात मैं उसकी वीडियो देख कर सोया. तो क्या हुआ?
अन्तर्वासना के सभी पाठकों का मेरा प्यार भरा नमस्कार।
मैंने अन्तर्वासना पर पहले भी अपनी कहानियां भेजी है, लेकिन मेरा पुराना जीमेल आईडी बंद हो जाने से अब नए अकाउंट से कहानियां लिख रहा हूं।
मैंने मेरी पिछली कहानी में बताया कि मैं एक बहुत छोटे शहर रांची से भागकर मुम्बई में रह रहा हूं।
एक बहुत ही अच्छे मित्र के माध्यम से पहले मुझे वॉचमैन फिर अभी ड्राइवर का जॉब मिल गया है।
मित्रो, यह हॉट बॉलीवुड सेक्स कहानी तब की है जब मैं लोखंडवाला मुंबई में एक स्ट्रगलिंग एक्टर के यहां ड्राइवर का काम करता था।
मेरे मालिक की फिल्म लाइन के उभरते हुए अभिनेताओं और अभिनेत्रियों के साथ बहुत दोस्ती थी।
सारे स्ट्रगलर एक्टर और एक्ट्रेस साथ में ही पार्टी किया करते थे।
मैं रोज नए नए फिल्म सितारों को देखकर बहुत खुश हुआ करता था।
और हिरोइनों को देखकर तो दिल गार्डन गार्डन हो जाता था।
छोटे छोटे कपड़े, कोई वन पीस, कोई माइक्रो स्कर्ट, कोई बैकलेस, उफ्फ ऐसी चिकनी चिकनी टांगें, गोरा मखमली बदन!
कभी कभी कोई ऐसी गर्म माल दिख जाती थी कि बिना मुठ मारे लन्ड को चैन ही नहीं मिलता था।
कई बार तो मेरे मालिक अपनी गाड़ी से उन हीरोइनों को घर तक भी छोड़ते थे; तो कभी कभी मुझे ही बोल देते थे और मैं अकेला घर छोड़ आता था।
वापस लौटने के बाद मुठ मारना मजबूरी हो जाती थी।
अब मैं आपको अपनी कहानी की नायिका से मिलवा दूं।
वो कोई और नहीं बल्कि दाइशा पाटनी है जो मेरे मालिक के साथ कभी-कभी घर तक जाती थी।
उसने साउथ की तेलगु और तमिल इंडस्ट्री में भी काम किया हुआ था और एम एस धोनी के लिए शूटिंग चल रहा था।
एक समय ऐसा था जब वो सभी भारतीयों की नेशनल क्रश थी।
सुंदरता की मूरत … जैसे स्वर्ग की कोई अप्सरा।
एकदम किसी फूल की तरह नाजुक उनका बदन था।
हंसती थी तो क्या कयामत लगती थी … उसकी एक मुस्कान पर पूरा कायनात भी कुर्बान!
गुलाब की पंखुड़ी की तरह सुर्ख लाल होंठ, जिसे जब देखो मुंह में लेकर चुभलाने का मन करे!
एकदम पतला छरहरा पर हर जगह सही कटाव और उभार से भरा दूध से भी ज्यादा गोरा बदन!
इतने सख्त और गोल उरोज मैंने आज तक किसी और के नहीं देखे।
लंबी और चिकनी टांगें, और जांघों के अंत में मौजूद जन्नत का दरवाजा।
जिसे एक बार मिल जाए, उसे और क्या चाहिए।
मैं हमेशा से ही उसको केल्विन क्लेन के एड में देख कर अनगिनत बार मुठ मारा करता था।
अब मैं आपको सीधे कहानी पर ले चलता हूं।
जैसा कि मैंने बताया कि मेरे मालिक लगभग रोज ही पार्टी किया करते थे।
एक बार पार्टी खत्म होने के बाद दाइशा पाटनी जी भी मेरे मालिक के साथ गाड़ी में आ गई।
शायद मेरे मालिक ने उन्हें घर छोड़ने को बोला था।
उसी दौरान दाइशा जी मेरे मालिक से बोली- मुझे गाड़ी चलाना नहीं आता है। अगर तुम्हारा ड्राइवर मुझे गाड़ी चलाना सिखा दे। मैं किसी ड्राइविंग स्कूल पर भरोसा नहीं कर सकती हूं। तुम्हारे ड्राइवर के साथ हमने बहुत बार सफर किया है, मैं उस पर विश्वास कर सकती हूं।
मैं सामने गाड़ी चलाते हुए सब सुन रहा था.
पहले तो मुझे अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ कि दाइशा जी मेरे से गाड़ी चलाना सीखना चाहती है।
पर जब उन्होंने दोबारा बोला तो मुझे यकीन हुआ।
मेरी तो किस्मत ही खुल गयी।
जरूर मेरे पिछले जन्म का कोई पुण्य होगा जो दाइशा पाटनी खुद मुझसे ड्राइविंग सीखना चाहती थी।
मेरे साथ साथ मेरे उस्ताद की भी खुशी का ठिकाना ना रहा।
मैं तो उसी समय से सपनों में खो गया कि चलो इसी बहाने मेरी स्वप्न सुंदरी का दीदार तो होगा।
ऐसा सोचते हुए हम दाइशा जी के बिल्डिंग के नीचे पहुंच गए।
मेरा सपना खुला और मैंने तुरंत गाड़ी से उतर कर अपने मालिक के तरफ का दरवाजा खोलना चाहा पर वो पहले से उतर कर फोन पर बात करने लगे.
मैंने भागते हुए दाइशा जी की ओर का दरवाजा खोला.
तब पहले दाइशा ने अपनी टांगों को बाहर निकाला, उन्होंने एक छोटा स्कर्ट पहना हुआ था।
घुटनों के ऊपर तक की स्कर्ट दाइशा जी की सुंदर और गोरे गोरे चिकनी जांघों को छिपाने में नाकामयाब थी।
उनके सुंदर और गोरे गोरे पैरों को देख कर मेरे लन्ड में तूफान आने लगा।
सुंदर पिंडलियों में उसकी सुंदर सी सैंडल हील वाली उसके गोरे गोरे पैरों पर बहुत ही खूबसूरत लग रही थी.
दूसरे पैर के बाहर निकलते ही दाइशा जी थोड़ा सा आगे की ओर हुई और झुक कर बाहर को निकली.
मैं मेरी नजर को उसके जांघ, पेट और नाभि से लेकर क्राप टॉप तक ले जाने से नहीं रोक पाया.
और मैं मंत्रमुग्ध सा दाइशा जी की उठी हुई चूचियों को, टॉप के नीच नंगी नाभि और कमर के क्षेत्र को निहारता रहा।
जब दाइशा जी मेरे सामने से निकलकर बाहर खड़ी हुई तो मेरे नाक में एक फ्रेश और ताजी सी खुशबू जेहन तक बस गई और मैं लगभग गिरते गिरते बचा था।
मेरा पूरा शरीर मेरा साथ नहीं दे पा रहा था.
मैं उस अप्सरा के इतने पास था पर कुछ नहीं कर सकता था।
हमारे बीच में सिर्फ़ गाड़ी का दरवाजा था।
मैं खड़ा-खड़ा उस सुंदरता को अपने अंदर उतार रहा था और नजरें नीचे किए अब भी उसकी कमर के कटाव को देख रहा था जहां दाइशा जी के स्कर्ट का बॉर्डर था।
तभी मेरे मालिक ने मुझे आवाज दी और मैं अपने मुक़द्दर को कोसता हुआ ड्राइविंग सीट पर बैठ गया।
गाड़ी के अंदर अभी भी दाइशा की खुशबू आ रही थी।
मेरे मालिक ने बोला- कल से तुम्हें दाइशा मैडम को गाड़ी चलाना सिखाना है। मुझे स्टूडियो ड्रॉप करके मैडम को यहीं से पिक कर लेना। ध्यान रहे मैडम बहुत बड़ी हीरोइन हैं, कोई गड़बड़ नहीं होनी चाहिए। और सुनसान इलाके में लेकर जाना, जहाँ लोग ना हों। पब्लिक अगर मैडम को पहचान जाएगी तो बेवजह परेशान करेगी. अच्छा रहेगा उनको गोरेगांव हाईवे के आगे आरे रोड ले जाना, पवई साइड से रोड बंद है, तो वहां लोग नहीं मिलेंगे।
मुझे अपने कानों पर विश्वास भी नहीं हो रहा था।
मैं अभी भी दाइशा जी के बारे में ही सोच रहा था और नजरें उठाए दाइशा जी की पतली कमर को बलखाते हुए अपने बिल्डिंग की ओर जाते हुए देखता रहा.
क्या कमर पटका पटका कर चलती थी दाइशा पाटनी!
क्या फिगर था … कमर कितनी पतली सी थी और चूचियां तो बहुत ही मस्त हैं. कितनी गोरी और नाजुक सी दिखती हैं.
मैं ड्राइविंग सीट पर बैठे बैठे दाइशा जी को अपने बिल्डिंग की ओर जाते हुए देखता रहा जैसे कोई भूखा अपने हाथों से रोटी छीनते हुए देख रहा हो।
मालिक की आवाज ने फिर से मेरा सपना तोड़ा और मैं घर की तरफ चल दिया।
रास्ते में एक तरफ खुशी थी तो दूसरी तरफ परेशानी।
खुशी इसलिए कि इतनी बड़ी हीरोइन जिस पर करोड़ों लोग मरते हैं, वो मेरी गाड़ी में अकेली इतने करीब होगी।
और परेशानी इस बात कि क्या मैं दाइशा जी को ड्राइविंग सिखा पाऊंगा?
कही मुझसे कोई गलती हो गई तो?
और अगर दाइशा जी इस तरह के कपड़े पहनेंगी तो क्या मैं अपनी निगाहों को उससे देखने से दूर रख पाऊंगा।
कहीं दाइशा जी को अकेले देखते ही अपना आपा ना खो दूं … यही सोचकर मैं अंदर से काम्प गया था।
दाइशा जी को जब ड्राइविंग सिखाऊंगा, वो बिल्कुल मेरे करीब होगी … यही सब सोचते हुए मैं अपने घर पहुंच गया।
और दाइशा जी को याद करते हुए एक बार फिर से मुठ मारा और फिर ना जाने कब नींद आ गया।
अगले दिन शाम में अपने मालिक को उनके स्टूडियो छोड़कर मैं दाइशा जी के अपार्टमेंट में गया।
वो पहले से तैयार होकर बाहर खड़ी थी.
दाइशा जी को देखते ही मेरा लन्ड फिर से तुनकने लगा।
वो आज साड़ी पहने हुए खड़ी थी.
ठीक इंपीरियल ब्लू के ‘मेन विल बी मेन; वाली एड की तरह।
उनको साड़ी पहने आज पहली बार देखा था मैंने!
दाइशा जी के ब्लाउज़ में फंसी हुई उसकी दो गोलाइयों और उसके नीचे की ओर जाते हुए चिकने पेट और लंबी-लंबी बांहों क्या गजब ढा रहे थे!
पहले तो मैं सबकुछ भूलकर दाइशा जी के हुस्न के बारे में सोचता रह गया।
मुझे होश तब आया, जब दाइशा जी ने गाड़ी में बैठकर मुझे आवाज लगायी।
मैंने कार स्टार्ट की और आगे देखने लगा.
पर मेरा मन बार बार पीछे बैठी दाइशा जी को देखने का हो रहा था।
जिस सुंदरी के मैं रोज सपने देखता हूं, आज वो मेरे पास बैठी है।
पर मुझे एक बात समझ में नहीं आई, दाइशा जी ने साड़ी के उपर ये पतला सा जैकेट क्यों पहन रखा था, सिर्फ साड़ी क्यों नहीं!
मैं अपने साहब के बताई हुई सुनसान जगह पहुंच गया।
वहां थोड़ा अंधेरा हो चला था.
मेरे मालिक को मेरे ऊपर भरोसा था, पर दाइशा जी के कामुक शरीर ने मेरे काम वासना को जगा रहा था। रह रह कर मेरा लन्ड मेरे पैंट के अंदर ही फुदक रहा था।
अचानक दाइशा जी ने पूछा- और कितना टाइम लगेगा हम लोगों को?
उनकी मधुर संगीतमयी आवाज को सुन के मैं मंत्रमुग्ध सा हो गया और मेरे गले से बहुत ही हल्के से निकला- बस 5 मिनट और!
अपने लक्ष्य तक पहुंचने से पहले ही दाइशा जी अपना विंड शीटर उतार दिया।
रियर व्यू में मेरी आंखों के सामने जैसे किसी खोल से कोई सुंदरता की तितली बाहर निकल रही थी!
उफ्फ़ … क्या नज़ारा था।
जैसे ही दाइशा जी ने अपने कोट को अपने शरीर से अलग किया, उनका यौवन उसके सामने था, आँचल ढलका हुआ था और बिल्कुल ब्लाउज के ऊपर था.
कोट को उतार कर दाइशा जी ने धीरे से साइड में रखा और अपने दायें हाथ की नाजुक नाजुक उंगलियों से अपनी साड़ी को उठाकर अपनी चूचियों को ढका या फिर कहिए मुझे चिढ़ाया.
मैंने गाड़ी रोड के साइड वाले मैदान में उतार कर एक जगह रोक दी।
अपना गेट खोल कर बाहर निकला मैं और पीछे पलटकर दाइशा जी की ओर देखते हुए उन्हें ड्राइविंग सीट पर आने को बोला।
दाइशा जी ने लगभग मचलते हुए अपनी साइड का दरवाजा खोला और जल्दी से नीचे उतर कर बाहर आई और लगभग दौड़ती हुई पीछे से घूमती हुई आगे ड्राइविंग सीट की ओर आ गई।
वहां मैं डोर पकड़े खड़ा था और अपने सामने स्वप्न सुंदरी को ठीक से देख रहा था।
मैं एकटक दाइशा जी की ओर नजर गढ़ाए देखता रहा जब तक वो मेरे सामने से होते हुए ड्राइविंग सीट पर नहीं बैठ गई.
पता नहीं क्यों मुझे ऐसा लगा कि दाइशा जी का ऐसे बैठना एक दिखावा था.
वो मुझे जान बूझकर अपने शरीर का दीदार करा रही थी.
बैठते ही दाइशा जी का आंचल उनके कंधे से ढलक कर उसकी कमर तक उसको नंगा कर गया. सिर्फ़ ब्लाउज में उसके चूचियां जो की आधे से ज्यादा ही बाहर थी मुझे दिख रही थी।
पर दाइशा जी का ध्यान ड्राइविंग सीट पर बैठते ही स्टियरिंग पर अपने हाथों को ले जाने की जल्दी में था.
वो बैठते ही अपने आपको भुलाकर स्टियरिंग पर अपने हाथों को फेरने लगी थी और उसके होंठों पर एक मधुर सी मुस्कान थी.
उनको ऐसे देखते हुए मेरी तो जैसे जान ही निकल गई थी.
अपने सामने ड्राइविंग सीट पर बैठी हुई उसे काम अग्नि से जलाती हुई स्वर्ग की उस अप्सरा को में बिना पलके झपकाए आँखें गड़ाए खड़ा-खड़ा देख रहा था.
मेरी सांसें जैसे रुक गई थी।
तभी मेरा ध्यान नीचे गया और मैंने दाइशा जी की साड़ी का पल्लू नीचे से उठाकर गाड़ी के अंदर रखा और अपने हाथों से उसे ठीक करके बाहर आते हुए हल्के हाथों से दाइशा जी की जाँघों को थोड़ा सा छुआ और दरवाजा बंद कर दिया।
मैं जल्दी से घूमकर अपने सीट पर बैठना चाहता था पर घूमकर आते आते मुझे अपने लोअर और अपने अंडरवीयर को थोड़ा सा हिलाकर अपने लन्ड को अकड़ने से रोका या कहिए थोड़ा सा सांस लेने की जगह बना दी वो तो तूफान खड़ा किए हुए था।
अंदर दाइशा जी अब भी उसी स्थिति में बैठी हुई थी, उन्होंने अपने पल्लू को उठाने की कोशिश नहीं की थी और अपने हाथों को स्टीयरिंग पर अब भी बच्चों की तरह घुमाकर देख रही थी।
मेरी ओर देखकर उन्होंने पूछा- अब क्या? आगे बताओ। गाड़ी चलाना सिखाना है ना मुझे!
मैं साइड की सीट पर बैठे हुए थोड़ा सा हिचका, पर फिर थोड़ा सा दूरी बना के बैठ गया और दाइशा जी को देखता रहा ब्लाउज के अंदर से उसकी गोल गोल चूचियां जो कि बाहर से ही दिख रही थी उन पर नजर डालते हुए और गले को तर करते हुए बोला- दाइशा जी, आप गाड़ी स्टार्ट करिए।
दाइशा जी- कैसे?
और अपने पल्लू को बड़े ही नाटकीय अंदाज से अपने कंधे पर डाल लिया ना देखते हुए कि उससे कुछ ढका या नहीं।
मैं- दाइशा जी, वो चाबी घुमा के!
साइड से और आंखों का इशारा करते हुए साइड की ओर देखा.
दाइशा जी ने भी थोड़ा सा आगे होकर चाबी तक हाथ पहुँचाया और घुमा दिया।
गाड़ी एक झटके से आगे बढ़ी और बंद हो गई। गाड़ी गीयर में थी.
मैंने झट से अपने पैरों को साइड से ले जाकर ब्रेक पर रख दिया और ध्यान से दाइशा जी की ओर देखा।
ब्रेक पर मेरा पैर पड़ते ही, मेरी जांघें दाइशा की जांघों पर चढ़ गई थी और मेरे हाथ दाइशा जी के कंधे पर आ गये थे।
साड़ी का पल्लू फिर से एक बार उसकी चूचियों को उजागर कर रहा था.
वो अपनी सांसों को नियंत्रण करने में लगी थी.
मैंने जल्दी से अपने पैरों को उसके ऊपर से हठाया और गियर पर हाथ ले जाकर उसे न्यूट्रल किया और डरते हुए दाइशा जी की ओर देखा।
मुझसे गलती हुई थी, पता नहीं अब दाइशा जी क्या कहेंगी।
पर दाइशा जी नॉर्मल थीं, उन्होंने मुझे रिलैक्स रहने को कहा और बोली- गाड़ी सीखने में इतना तो चलता ही है। हमको कुछ नहीं आता है, ऐसे तुम सिखाते हो गाड़ी चलाना।
मेरे मुंह से कोई आवाज नहीं निकल पा रही थी।
तभी दाइशा ने दुबारा बोला- अरे तुम थोड़ा इधर आकर बैठो और हमें बताओ कि क्या करना है. और ब्रेक वगेरह सब कुछ हमें कुछ भी नहीं पता है।
मैं दाइशा जी को एक्सलेटर, ब्रेक, क्लच सब कुछ बताने लगा।
पर बताते हुए मेरी आंखें दाइशा जी के उठे हुए उभारों को, उनके नीचे उसे पेट और नाभि तक दीदार कर रही थी।
दाइशा ने फिर बोला- मैं तो कुछ भी नहीं जानती. तुम जब तक हाथ पकड़कर नहीं सिखाओगे गाड़ी चलाना तो दूर … स्टार्ट करना भी नहीं आएगा।
और अपना हाथ स्टीयरिंग पर रखकर किसी नाराज दोस्त की तरह की खिड़की से बाहर देखने लगी।
मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था अब क्या करूं!
एक तरफ दाइशा जी को गाड़ी चलाना सिखाना है और दूसरी तरफ मेरे लोअर में मेरा लन्ड बगावत पर उतर आया था।
तभी मुझे एक आइडिया आया, मैंने दाइशा को बोला- आप एस्केलेटर पर अपना पैर रखो और मैं ब्रेक और क्लच संभालूंगा और थोड़ा स्टीयरिंग भी देख लूंगा।
यह सुनकर दाइशा जी खुश हो गई और एकदम मचलते हुए हाथ नीचे ले जाकर चाभी घुमा दिया और एक पैर एस्केलेटर पर रख दिया, दूसरा पैर फ्री था.
फिर वो मुझे देखने लगी।
मैं अभी भी सोच ले डूबा हुआ था।
मुझे ऐसे देखकर वो थोड़ा चिढ़कर बोली- अगर गाड़ी नहीं सिखाना … ऐसे ही सोचते रहना है … तो मुझे घर ड्रॉप कर दो।
घर ड्रॉप करने के नाम पर मेरे शरीर में जैसे जोश आ गया था, अपने हाथों में आई इस चीज को में ऐसे तो नहीं छोड़ सकता था.
अब चाहे कुछ भी हो जाए … चाहे जान भी चली जाए, मैं अब पीछे नहीं हटूंगा.
मैंने अपने हाथों को ड्राइविंग सीट के पीछे रखा और थोड़ा सा आगे की ओर झुक कर अपने पैरों को आगे बढ़ाने की कोशिश करने लगा ताकि मेरे पैर ब्रेक तक पहुँच जायें.
पर कहाँ पहुँचने वाले थे पैर …
मेरी परेशानी को समझते हुए दाइशा जी अपने पल्लू को फिर से ऊपर करते हुए बोला- तुम थोड़ा और इधर आओ, तब पैर पहुंचेगा, ऐसे कैसे पहुंचेगा।
मुझे सकुचाते हुए देखकर दाइशा जी मेरे ऊपर इस बार थोड़ा गुस्से में बोली- थोड़ा सा टच हो जाएगा तो क्या होगा … तुम बस इधर आओ, ज्यादा देर मत करो और अपने आपको भी थोड़ा सा दरवाजे की ओर सरक के बैठ गई।
अब मैं अपने को रोक ना पाया … अपने पैर को गियर के उस तरफ कर लिया और दाइशा जी की चिकनी जाँघों से जोड़ कर बैठ गया…. मेरी जांघें दाइशा जी की जांघों को दबा रही थी उसके वेट से उनकी जांघों को तकलीफ ना हो सोचकर मैंने थोड़ा सा अपनी ओर हुआ ताकि दाइशा जी अपना पैर हटा सके पर वो तो वैसे ही बैठी थी और अपने हाथों को स्टियरिंग पर बच्चों जैसा घुमा रही थी।
मैंने ही अपने हाथों से दाइशा जी की जांघों को पकड़ा और थोड़ा सा उधर कर दिया और अपनी जांघों को रखने के बाद उनकी जांघों को अपने ऊपर छोड़ दिया.
वह कितनी नाजुक और नरम सी जांघों का स्पर्श था … वो कितना सुखद और नरम सा …
मैंने अपने हाथों को सीट के पीछे ले जाकर अपने आपको अड्जस्ट किया और दाइशा जी का आँचल अब भी अपनी जगह पर नहीं था, उनकी दोनों चूचियां मुझे काफी हद तक दिख रही थी।
मैं उत्तेजित होता जा रहा था पर अपने पर काबू किए हुआ था.
अपने पैरों को मैं ब्रेक तक पहुँचा चुका था और अपनी जांघों से लेकर टांगों तक दाइशा जी के स्पर्श से अविभूत सा हुआ जा रहा था.
अपने नथुनों में भी दाइशा जी की परफ्यूम को बसा कर मैं अपने आपको जन्नत की सैर की ओर ले जा रहा था।
दाइशा जी लगभग मेरी बांहों में थी और उन्हें कुछ भी ध्यान नहीं था.
मैं अपनी स्वप्न सुंदरी के इतने पास था कि मैं कभी सपने में भी सोच नहीं सकता था।
मैंने क्लच दबा के धीरे से गियर चेंज किया और धीरे-धीरे क्लच को छोड़ने लगा और दाइशा जी को एस्केलेटर बढ़ने को कहा।
दाइशा जी ने वैसा ही किया.
पर एस्केलेटर कम था, गाड़ी धड़ाक से रुक गई।
दाइशा जी अपना चेहरा उठाकर मुझे देखने लगी.
मैंने थोड़ा और एस्केलेटर लेने बोला और अपने दायें हाथ से गियर को फ्री करके रुका.
पर दाइशा जी की ओर से कोई हरकत ना देखकर लेफ्ट हैंड से उनके कंधे पर थोड़ा सा छूने लगा और कहा- दाइशा जी … गाड़ी स्टार्ट कीजिए।
दाइशा जी किसी इठलाती हुई लड़की की तरह से हँसी और झुक कर चाभी को घुमाकर फिर से गाड़ी स्टार्ट की.
मेरी हालत बहुत खराब हो चुकी थी, मैं अपने को अड्जस्ट करने की बहुत कोशिश कर रहा था।
मेरा लन्ड मेरा साथ नहीं दे रहा था, वो अपने आपको आजाद करना चाहता था।
मैंने फिर से अपने लोअर को अड्जस्ट किया और अपने लन्ड को गियर के सपोर्ट पर खड़ा कर लिया, ढीले अंडरवीयर होने से मुझे कोई दिक्कत नहीं हुई।
अब जैसे ही मैं गियर चेंज करने वाला ही था कि दाइशा जी का हाथ अपने आप ही गियर रॉड पर आ गया, हाथ ठीक मेरे लन्ड के ऊपर था, जरा सा नीचे होते ही मेरे लन्ड को छू जाता।
मैं थोड़ा सा पीछे हो गया और अपने हाथों को दाइशा जी के हाथों रख दिया और जोर लगाकर गियर चेंज किया और धीरे से क्लच छोड़ दिया.
गाड़ी आगे की ओर चल दी।
मैंने थोड़ा सा एस्केलेटर बढ़ाने का इशारा किया।
मेरी गर्म-गर्म सांसें अब दाइशा जी के चेहरे पर पड़ रही थी और शायद वो भी इसे एंजॉय कर रही थी क्योंकि उन्होंने किसी तरह से मुझे रोकने की कोशिश नहीं की।
पर शायद उन्होंने सब कुछ मेरे हाथों में सौंप दिया था.
वो बहुत ज्यादा तेज तेज सांस छोड़ रही थी, उनकी सांसें अब उनका साथ नहीं दे रही थी, कपड़े भी जहां तहाँ हो रहे थे।
ब्लाउज के अंदर से दाइशा जी की चूचियां भी ऊपर नीचे हो रही थी।
मेरा एक हाथ तो अब दाइशा जी के कंधे पर ही आ गया था और उस नाजुक सी काया का लुत्फ़ ले रहा था और दूसरा हाथ कभी दाइशा जी के हाथों को स्टियरिंग में मदद करता तो कभी गियर चेंज करने में!
दाइशा जी के तेज तेज सांस लेने से मुझे भी भली भाँति पता चल गया था कि वो बहक गई हैं।
पर शुरुआत कैसे करें!
मैं आगे बढ़ने की कोशिश भी कर रहा था.
पूरी थाली सजी पड़ी थी बस हाथ धोकर श्री गणेश करना बाकी था।
पर एक डर ने मुझे शुरुवात करने से रोक रखा था।
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